ओरछा का इतिहास | श्री राम राजा मन्दिर की कहानी | राजा हरदौल की कहानी
ओरछा का इतिहास बड़ा ही गौरवशाली है पढ़े इस पोस्ट में राजा राम मन्दिर की कहानी राजा हरदौल की कहानी ओरछा के किले और महलों का इतिहास , ओरछा भारत के मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित एक ऐसा क़स्बा है जहाँ किले और मंदिरों का अपना एक अलग ही इतिहास है पर्यटन की दृष्टिकोण से यह जगह बहुत बढ़िया है आप हमारी पोस्ट ओरछा में घूमने की जगहों की A to Z जानकारी – Orchha Tourist Places (2022) से यहाँ घूमने की जानकारी पढ़ सकते है |
ओरछा का इतिहास
बेतवा नदी के किनारे पर बसा ओरछा मध्य काल के समय में परिहार राजाओ की राजधानी हुआ करता था अच्छा परिहार राजाओ के बाद यहाँ पर चंदेल राजाओ ने भी शासन किया है और चन्देल शासको के बाद यहाँ पर बुन्देल राजाओ ने राज किया है जो आपको वर्तमान में ओरछा दिखाई देता है उसके निर्माण की शुरुआत राजा रूद्र प्रताप सिंह ने सन 1501 से करवाई था अब हम आपको इस जगह के प्रमुख प्रमुख जगहों के इतिहास से रूबरू कराते है विस्तृत में ओरछा का इतिहास बताते है –
श्री राम राजा मन्दिर की कहानी
श्री राम राजा सरकार का महत्त्व आपको अयोध्या के बाद ओरछा में दिखाई देता है यहाँ लोग भगवान राम को अपना राजा मानते है यहाँ पर राम हर धर्म के राजा है दूर-दूर से लोग इस स्थल पर राम राजा के दर्शन करने आते है आइये अब इस मन्दिर के इतिहास पर आते है जो शुरू होता है मधुकर शाह जी के कार्यकाल से जो की यहाँ के महाराजा थे और कृष्ण भक्त थे और महारानी जो की ग्वालियर जिले से थी वो एक राम भक्त थी महारानी का नाम कुंवर गणेश था |
एक दिन मधुकर शाह और कुंवर गणेश बाते कर रहे थे और बातो की बातो में दोनों अपने अपने ईष्ट देव को लेकर झगडा करने लगे और महाराजा मधुकर शाह ने महारानी से बोल दिया कि यदि वो एक सच्ची राम भक्त है तो जाए अयोध्या और रामजी को यहाँ ओरछा ले आये अब महारानी जी ने भी यह बात मान ली और बोली की या तो अब मै अपने ईष्ट प्रभु राम को अयोध्या से ओरछा लाऊंगी या फिर अयोध्या में ही अपने प्राण त्याग दूंगी |
अब क्या था महारानी कुंवर गणेश आ गई अयोध्या और सरयू नदी के किनारे शुरू कर दो अपने प्रभु राम जी की पूजा 7 दिन हो चुके थे ( कही कही 21 दिन बताया जाता है ) महारानी जी को श्रीराम ने दर्शन नहीं दिए अब महारानी जी हताश होकर अपने प्राण त्यागने का निर्णय लेती है और सरयू में छलांग लगा देती है तभी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एक बालक के रूप में वहां आ जाते है ( कुछ लोगो का कहना है की सरयू में जब महारानी से छलांग लगाईं थी तो जलधारा में ही भगवान राम महारानी की गोद में बैठ गए थे ) |
अब महारानी बालक रूप में आये श्रीराम से ओरछा चलने का निवेदन करती है श्रीराम मान भी जाते है लेकिन तीन शर्तो के साथ अब महारानी कुंवर गणेश भगवान राम से उनकी शर्ते पूछती है अब आप शर्ते सुनिये –
पहली शर्त – जहाँ हम जा रहे है वहां के सिर्फ हम ही राजा होंगे कोई दूसरा नहीं
दूसरी शर्त – अयोध्या से ओरछा तक आपके साथ हम पैदल जायेंगे वो भी पुण्य नक्षत्र में
तीसरी शर्त – यदि हम कही पर भी बैठ गए तो वहां से उठेंगे नहीं |
महारानी कुंवर गणेश ने श्रीराम की तीनो शर्ते मान ली फिर श्रीराम एक मूर्ति के रूप में महारानी की गोद में बैठ गए और महारानी पैदल ही ओरछा की तरफ चल दी और 8 महीने 28 दिन में वो ओरछा आ गई थी अच्छा यह भी कहा जाता है महारनी के ओरछा पहुँचने से पहले महाराजा मधुकर शाह को सपना आया था की महारानी भगवान राम को लेकर आ रही है तो मधुकर शाह ने भगवान राम के लिये मन्दिर बनवाना शुरू कर दिया जिसे चतुर्भुज मन्दिर कहते है |
लेकिन यह चतुर्भुज मन्दिर पूर्णता बन पाता उससे पहले ही महारानी कुंवर गणेश जी श्रीराम को लेकर ओरछा आ गई और श्रीराम को अपने महल की रसोई घर में थोड़े समय के लिए स्थापित कर दिया फिर जब चतुर्भुज मंदिर बन गया तब उस मूर्ति को रसोई घर से उठाकर इस चतुर्भुज मंदिर में स्थापित किया जाना था लेकिन श्रीराम की वह मूर्ति वहां से उठी ही नहीं इसी को सभी ने भगवान राम का चमत्कार माना और उसी महल को मंदिर बना दिया इसी महल नुमा मंदिर में आज आपको श्री राम राजा दर्शन देते है इस मंदिर को ही श्री राम राजा मन्दिर कहा जाता है |
तो इसीलिये महल में बैठे राजा राम ओरछा के राजा है ओरछा में सिर्फ राजा राम की ही सर्कार चलती है यहाँ पर पुलिस द्वारा बन्दूक से राजा राम को सलामी दी जाती है ओरछा का इतिहास बगैर श्री राम राजा सरकार के इतिहास के अधूरा है |
राजा हरदौल की कहानी – ओरछा का इतिहास
राजा हरदौल की कहानी बुन्देलखण्ड के लगभग हर घर मे सुनाई जाती है यह कहानी भाई बहन के प्रेम को दिखाती है देखिये हरदौल राजा वीर सिंह देव के पुत्र थे और जुझार सिंह हरदौल के भाई थे राजा वीर सिंह ने जुझार सिंह को ओरछा का राजा बनाया था और हरदौल को दीवान कोई व्यक्ति जो हरदौल से नफरत करता था उसने राजा जुझार सिंह को बहका दिया की हरदौल के अवैध सम्बन्ध जुझार सिंह की पत्नी चम्पावती के साथ है |
बस अब क्या था राजा जुझार सिंह ने रानी चम्पावती को हरदौल को जहर देने का आदेश दे दिया रानी गई लेकिन वो हरदौल को ज़हर न दे सकी अपनी भाभी की इज्जत की खातिर हरदौल ने स्वयं ही ज़हर पी लिया कहानी अभी समाप्त नहीं होती है हरदौल को बस्ती से दूर दफना दिया जाता है फिर एक दिन जुझार सिंह हरदौल की बहन कुंजावती आती है कुंजावती दतिया के राजा राजा रणजीत सिंह की पत्नी थी |
कुंजावती अपनी बेटी की शादी में राजा जुझार सिंह से भात मांगने आई थी लेकिन जुझार सिंह ने कुंजावती का यह निवेदन यह बोलकर ठुकरा दिया की कुंजावती तो हरदौल से ज्यादा स्नेह करती थी तो अब जाकर शमशान में हरदौल से ही भात मांगे अब क्या कुंजावती रोने लगी और रोते रोते ही पहुँच गई हरदौल की समाधि पर और भात मांगने लगी तभी एक आवाज आई की हरदौल भात लेकर आएगा |
लोककथाओ की माने तो सच में हरदौल की आत्मा अपनी भांजी की शादी में भात लेकर गई थी लेकिन यहाँ जो कुंजावती का दामाद था वो नहीं माना फिर हरदौल को अपने शरीर के साथ प्रकट होना पड़ा था तभी से बुन्देलखंड में हरदौल को देवता के रूप में पूजते है |
बुन्देलखण्ड में आज भी कोई भी शादी या यज्ञ इत्यादि होता है तो सबसे पहला निमन्त्रण हरदौल को ही दिया जाता है तो ऐसे थे हरदौल ओरछा में श्री राम राजा मंदिर के समीप ही हरदौल बैठका बना हुआ है , राजा हरदौल की कहानी ओरछा का इतिहास में सदैव याद की जायेगी |
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सावन भादो पिलर ओरछा का इतिहास
सावन भादो मीनार श्री राम राजा सरकार मन्दिर के समीप ही बने हुये है इस दोनों मीनारों के बारे में किद्वंती है कि सावन महीने के ख़त्म के बाद और भादव का महिना शुरू होने से पहले यह दोनो मीनारे आपस में मिल जाती है और इन मीनारों के नीचे सुरंग बनी है जहाँ से राजपरिवार के लोग आया जाया करते थे फ़िलहाल अब ये सुरंगे बंद कर दी गई है वैसे ये जो दोनों पिलर के आपस में मिलने की बात है इसके कोई भी सबूत नहीं है |
ओरछा के किले का इतिहास
अब बात करते ओरछा के किले के इतिहास बारे में राजा रूद्र प्रताप सिंह ने यह किला बनवाया था इसके बाद यही कई राजा हुये और सबने अलग अलग महल बनवाये थे
सबसे पहले बात करते है जहाँगीर महल के इतिहास की जिसका निर्माण राजा वीर सिंह देव ने सन 1605 से 1627 के मध्य करवाया था इस महल का निर्माण मुग़ल सम्राट जहाँगीर के सम्मान में करवाया गया था ये महल बुन्देल और मुग़ल शिल्प कला का मिश्रित उदहारण है इस महल का जो प्रथम तल है उसका निर्माण सन 1606 में जहाँगीर के आने से पहले पूर्ण हो गया था बाकी जो दृतीय ताल पर जो कक्ष , गुम्बद और छत्रियां बनी है उनका निर्माण सन 1618 में हुआ था |
राजा वीर सिंह और जहाँगीर की दोस्ती बहुत ही ज्यादा थी क्युंकी जब मुग़ल शासक अकबर ने अबुल गजल को जहाँगीर को काबू में करने के लिये भेजा था इसी बीच जहाँगीर की दोस्ती राजा वीर सिंह से हो गई थी तो फिर राजा वीर सिंह ने अबुल फज़ल को मरवा दिया था फिर जब जहाँगीर मुग़ल बादशाह बना तो उसने ओरछा को राजा वीर सिंह को सौंप दिया था ऐसा कुछ इतिहास है |
अब बात करते है राय प्रवीण महल के इतिहास की यह महल भी ओरछा के किले के अन्दर बना हुआ है सन 1592 से 1605 के मध्य महाराजा राम शाह के छोटे भाई ओरछा के कार्यवाहक शासक थे जिनका नाम इन्द्रजीत सिंह था राय प्रवीण उनकी प्रेमिका थी राय प्रवीण एक कुशल नर्तकी थी , महाकवि केशवदास ने अपने ग्रन्थ कवी प्रिय में राय प्रवीण की सुन्दरता का खूब बखान किया हुआ है राय प्रवीण महाकवि केशवदास की शिष्या थी तो यह राय प्रवीण महल राजा इन्द्रजीत ने अपनी प्रेमिका राय प्रवीण के लिये ही बनवाया था |
अब बात करते है किले के ही अन्दर स्थित राजा महल के इतिहास की जिसका निर्माण सन 1501 से 1531 के मध्य राजा रूद्र प्रताप ने शुरू करवाया था इसके बाद राजा रूद्र प्रताप सिंह के बड़े बेटे भारती चंद ने इस महल का कार्य 1531 से 1554 में मध्य में पूर्ण करवाया फिर इस महल में कुछ परिवर्तन भी हुए जो भारती चंद के अनुज मधुकर शाह ने 1554 से 1592 के मध्य करवाए |
ओरछा का इतिहास से सम्बन्धित प्रश्न
यह बताने के लिये हमने पोस्ट लिखी है आप पढ़े और पोर इतिहास समझिये |
रामराजा सरकार की कहानी ओरछा की महारानी कुंवर गणेश जी के इर्द गिर्द घूमती है पूरी कहानी हमने लिखी है कृपया पोस्ट पढ़े |
निसंदेह ओरछा से जुड़ा कोई भी मुद्दा हो तितिहस हो या भूगोल राजा हरदौल जरूर याद किये जायेंगे |
राजा रुद्रप्रताप सिंह ने |
राजा इन्द्रजीत सिंह जे अपनी प्रेमिका राय प्रवीण के लिये यह किला बनवाया था |
राजा महल के निर्माण का काम राजा रूद्र प्रताप ने शुरू करवाया था बाद में भारती चंद और मधुकर शाह ने इसे पूरा बनवाया था |
जहाँगीर महल का निर्माण राजा वीर सिंह देव जी ने करवाया था |
तो दोस्तों ये था ओरछा का इतिहास जिसमे हमने आपको श्री राम राजा मन्दिर की कहानी बताई राजा हरदौल की कहानी बताई यह समस्त जानकारी मेरे खुद की नहीं है जो मैंने लोगो से सुना है ओरछा गया था तो वहां लगे पुरातत्व विभाग के बोर्ड में पढ़ा वही से समस्त जानकारी एकत्रतित करके यह पोस्ट लिखी है कही कोई गलत जानकारी हो तो कृपया कमेन्ट बॉक्स में लिखकर अवश्य बता दे |
बहुत बढ़िया जानकारी , बहुत सुंदर पर्यटन स्थल
thanks