सोमनाथ मंदिर का इतिहास – सोमनाथ मंदिर की कहानी
सोमनाथ मंदिर का इतिहास और सोमनाथ मंदिर की कहानी के बारे में हम सबको जानना चाहिये क्यूंकि इस मन्दिर का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व अत्यधिक है सबसे पहले तो यह जान लीजिये की सोमनाथ मन्दिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है और यह गुजरात राज्य में स्थित है |
आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से इस मन्दिर की पौराणिक कथा और इतिहास के बारे में बताएँगे |
सोमनाथ मंदिर का इतिहास और सोमनाथ मंदिर की कहानी
सबसे पहले हम लोग यह जान ले की सोमनाथ ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य में प्रभास क्षेत्र ( काठियावाड़ क्षेत्र ) में गिर सोमनाथ जिले में स्थित है , यह मन्दिर समुद्र के किनारे पर वेरावल बंदरगाह के समीप है |
अगर हम सोमनाथ मंदिर की कहानी मतलब पौराणिक कथा की बात करेंगे दो हमको चन्द्र देव की कहानी जाननी होगी वही अगर हम सोमनाथ मंदिर का इतिहास जानने की कोशिश करेंगे तो मंदिर पर हुए हमलो के बारे में जानना होगा चलिए अब ये दोनों जानकारी कर ली जाए |
सोमनाथ मंदिर की कहानी – सोमनाथ मन्दिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथानुसार सब कहते है सोम का मतलब चन्द्रमा होता है और और सोम के नाथ है भोलेनाथ शिव शंकर तभी इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ है चलिये अब शुरू करते है सोमनाथ मंदिर की कहानी |
चन्द्र देव का विवाह राजा दक्ष की 27 पुत्रियों के साथ हुआ था लेकिन चंद्रदेव को इन 27 पत्नियों में सबसे ज्यादा प्रिय रोहिणी थी चंद्रदेव रोहिणी से अत्यधिक स्नेह करते थे |
ये बात राजा दक्ष की अन्य पुत्रियों को नागुजार लगी तो उन्होंने अपने पिताजी राजा दक्ष से इस बात की शिकायत की तो दक्ष जी ने चंद्रदेव को समझाया लेकिन चन्द्र देव पर इस बात का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा और उनका रवैया पहले जैसा ही रहा अब राजा दक्ष ने नाराज होकर चन्द्र देव को श्राप दे दिया कि चन्द्र तुम दिन प्रति दिन अपनी चमक और तेज खोते जाओगे |
अब इस श्राप का परिणाम भयावह हुआ चन्द्र देव अपना तेज खोने लगे इसका प्रकृति पर भी बुरा असर पड़ने लगा समस्त देवी देवता भी परेशान हो गए तो समस्त देवी-देवता , ऋषि मुनियों के साथ इस श्राप से मुक्त होने का उपाय ढूँढने ब्रम्ह देव के पास पहुच गए |
ब्रम्ह देव ने चंद्रमा से कहा की “चंद्रदेव आप प्रभाष क्षेत्र में जाकर भोलेनाथ की तपस्या करे तो आपके सारे कष्ट मिट जायेंगे” |
बस अब क्या था चन्द्र देव ने महादेव की कठोर तपस्या आरम्भ कर दी और बहुत दिनों तक तप करते रहे आखिर भगवान शिव जी इस कठोर तप से प्रसन्न हुये और चंद्रदेव को उस श्राप से मुक्त किया और इसके साथ साथ राजा दक्ष के श्राप का भी मान रखा |
भोलेनाथ ने चंद्रदेव से कहा ” हे चन्द्रदेव कृष्ण पक्ष के दिनों में प्रत्येक दिन तुम्हारी एक एक कला घटेगी परन्तु शुक्ल कक्ष में इसी प्रकार से प्रत्येक दिन तुम्हारी कला बढ़ती जायेगी और पूर्णिमा के दिन तुम अपना पूरा तेज पा जाओगे ” |
अब यदि आपको कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष समझ नही आ रहा तो इतना समझिये की शिवजी का ये वरदान था की 15 दिन तक लगातार चंद्रदेव की चमक कम होती जाएगी इसके बाद अगले 15 दिन चमक रोज बढती जाएगी |
ऐसा वरदान पाकर चंद्रदेव तो खुश थे की अपितु समूचा विश्च खुश था अब सब कुछ सामान्य हो गया था चंद्रदेव ने भगवान भोलेनाथ से आग्रह किया हे भोलेनाथ आप माता पार्वती के साथ यही निवास करे |
शिवजी ने चन्द्रदेव के आग्रह का मान रखा और फिर चंद्रदेव ने यहाँ भोलेनाथ की स्थापना की और भोलेनाथ तबसे यही निवास करने लगे इसीलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम पड़ा है सोमनाथ |
अच्छा इसके अलावा एक और कथा सोमनाथ मन्दिर के बारे में प्रचलित है की श्री कृष्ण ने इसी स्थल पर अपना देह त्याग किया था पौराणिक कथा के अनुसार प्रभाष क्षेत्र में जब यदुवंशी कुल का नाश होने लगा था तब श्रीकृष्ण बहुत दुखी हुये थे और प्रभाष क्षेत्र में आकर रहने लगे थे |
एक दिन भगवान कृष्ण पीपल के पेड़ के नीचे सो रहे थे तभी एक शिकारी ने उनके पैर के पदचिन्ह को हिरन समझकर विष भरा तीर चला दिया था जो की श्रीकृष्ण के तलुए में लगा बस भगवान ने उसी समय अपना देह त्याग दिया |
जिस स्थल पर प्रभु श्रीकृष्ण ने देह त्याग किया था वहां पर सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है |
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चलिए अब सोमनाथ मंदिर का इतिहास जानते है देखिये यह मंदिर प्राचीन काल से ही अत्यन्त वैभवशाली रहा है इसीलिये सोमनाथ मन्दिर पर कई बार आक्रमण हुये है कई बार इसे लूटा गया इसे तोडा गया यह हमने इतिहास में पढ़ा है |
प्राप्त जानकारियों के अनुसार यह मंदिर ईसा पूर्व अस्तित्व में आया और सातवी शताब्दी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण मैत्रक राजाओ ( वल्लभी ) ने किया |
अब इस मंदिर को तोड़ने की जो पहली जानकारी मिली उसके अनुसार आंठवी सदी में सिंध के गवर्नर ने इसे तुडवा दिया फिर राजा नागभट्ट ने इसका पुनर्निर्माण करवाया |
अब प्राप्त जानकारी के अनुसार सन 1024 में महमूद गजनवी ने सेना के साथ इस मन्दिर पर हमला करके इसे लूट (सम्पत्ति) लिया इस आक्रमण में बहुत से भक्तो की जान भी गई थी |
अब सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण का जिम्मा गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने अपने ऊपर लिया बाद में सिद्धराज जयसिंह , सौराष्ट के राजा खंगार और विजयेश्वर कुमार पाल ने भी सहयोग किया था |
बात है सन 1297 की जब दिल्ली की गद्दी पे अलाउद्दीन खिलजी बैठा था अलाउदद्दीन के सेनापति ने गुजरात पे हमला किया और फिर से सोमनाथ मन्दिर को लूटा गया मन्दिर की सारी धन सम्पदा लेकर भाग गए दुबारा फिर इस मंदिर को हिन्दू राजाओ ने बनवाया |
अब आते है सन 1665 में औरंगजेब में फिर से सोमनाथ के पवित्र मन्दिर को तुडवा दिया और इसके बाद भी वह चुप नहीं बैठा उसने देखा की मंदिर तुडवाने के बाद भी लोग उसी स्थल पर पूजा पाठ कर रहे है तो औरंगजेब ने एक सेना भेजी और फिर बहुत खून बहा |
इसके बाद सन 1706 में फिर से औरंगजेब ने इस मंदिर को तुडवा दिय कुछ वर्षो बाद इन्दौर की रानी अहिल्याबाई ने मुख्य मंदिर से थोडा हटकर पूजा अर्चना के लिये एक दूसरा मंदिर बनवाया था |
अब जब भारत आज़ाद हुआ अंग्रेजो से तो सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर को बनवाने का जिम्मा लिया और आप आज जो सोमनाथ का मंदिर देखते है उस बनवाने का श्रेय श्री पटेल जी को ही जाता है , सन 1962 में यह मंदिर बनकर तैयार हुआ था तो देखा आप सब ने सोमनाथ मन्दिर का इतिहास कितना भयावह है |
सोमनाथ मंदिर का इतिहास और सोमनाथ मंदिर की कहानी से सम्बन्धित प्रश्न –
सोमनाथ मन्दिर गुजरात राज्य में है |
इस पोस्ट में सोमनाथ मंदिर की कहानी को विस्तृत में बताया गया है कृपया पढ़े |
इस पोस्ट में सोमनाथ मंदिर का इतिहास भी विस्तृत में बताया गया है कृपया अवश्य पढ़े |
सोमनाथ मंदिर पर 17 बार आक्रमण हुये |
पौराणिक कथाओ के अनुसार इस मन्दिर का निर्माण ऋग्वेद में हुआ था इस समय जो अप मंदिर देखते है उसका निर्माण सन 1995 में श्री वल्लभ भाई पटेल ने करवाया था |
पौराणिक कथाओ के अनुसार सोमनाथ मंदिर का निर्माण चंद्रदेव ने करवाया था इतिहास की माने तो राजा भीमदेव ने इसे बनवाया था अभी जो आप मंदिर देखते है उसका निर्माण सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया था |
महमूद गजनवी
निष्कर्ष
आपने इस पोस्ट में सोमनाथ मंदिर का इतिहास और सोमनाथ मंदिर की कहानी के बारे में जानकारी हासिल की ये सब जो मैंने बताया है वो सब रिसर्च के आधार पर आपसे साझा किया है , अगर कही पर कोई त्रुटी हुई हो तो क्षमा प्राथी हूँ |
अती सुन्दर मंदिर
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