Naimisharanya History in Hindi |नैमिषारण्य का इतिहास पौराणिक कथा
Naimisharanya History in Hindi – नैमिषारण्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर सीतापुर जनपद में स्थित है वही हरदोई जनपद से नैमिषारण्य की दूरी लगभग 42 किलोमीटर है यह एक पवित्र स्थल और तपोभूमि है आज हम इस स्थल के इतिहास और पौराणिक कथाओ से आपका परिचय करायेंगे |
नैमिषारण्य तीर्थ स्थल का जिक्र विष्णु पुराण मारकंडेय पुराण वाराह पुराण में भी मिलता है इससे इत्तर इस स्थल के बारे में कई सारी लोक कथाये भी प्रचलित है , यह क्षेत्र साधुओ की तपोभूमि भी है तो कही सत्यनारायण की कथा में भी इस स्थल का महत्त्व मिलता है |
आदि गुरु शंकराचार्य और महान संत सूरदास जी भी इस पवित्र स्थल पर आये थे | महाभारत में इस स्थल का उल्लेख मिलता है वही ऋग्वेद में भी आप इसका उल्लेख पाएंगे , वाल्मीकि रामायण में भी इस स्थल का जिक्र है |
Naimisharanya History in Hindi
अब हम एक एक करके नैमिषारण्य तीर्थ स्थल की सभी लोक कथाओ के बारे में जानते है –
सबसे पहले बात करते है मार्कंडेय पुराण की इस पुराण में कई बार नैमिषारण्य का जिक्र हुआ है इस पुराण के अनुसार नैमिषारण्य में ही 88000 ऋषि मुनियों को सूतजी ने कई पुराण सहित महाभारत की कथा सुनाइ थी सूतजी ऋषि वेदव्यास के परम शिष्य थे और बात करे तो कहा जाता है कि ब्रह्माजी ने पृथ्वी पर मानव जीवन की शुरुआत करने का दायित्व मनु और सतरूपा को सौंपा था और इस जोड़ी मनु और सतरूपा ने नैमिषारण्य में ही कई वर्षो तक तपस्या की थी |
एक लोककथा के अनुसार देवराज इंद्र को वृत्ता नाम के एक असुर ने उनके देवलोक से उनको ही निकाल दिया था यह असुर अत्यंत बलशाली था एक वरदान के चलते इस असुर का वध सिर्फ किसी महान ऋषि की अस्थियो से बने शस्त्र से होना था इसीलिए देवराज इंद्र ऋषि दाधीच के पास पहुंचे और ऋषि को इस घटना से अवगत कराया |
ऋषि दधीचि तुरंत ही अपनी अस्थियाँ त्याग करने के लिए तैयार हो गए लेकिन ऋषि ने एक शर्त रखी कि मै अपने प्राण त्याग करने से पहले सभी पवित्र नदियों के जल से स्नान करना चाहता हु अब यदि ऋषि दधीचि जाकर सभी नदियों में स्नान करते तो असुर वृत्ता का वध करने में बहुत देरी हो जाती और देवराज इंद्र को ऋषि की भी बात माननी थी |
तव देवराज ने जल देवता को आदेश दिया की तुरंत ही सभी पवित्र नदिया इस नैमिषारण्य में आये बस तबसे ही यहाँ स्नान करना अति लाभदायक माना जाता है यह स्थल दधीचि कुण्ड के नाम से जाना जाता है |
Naimisharanya History
नैमिषारण्य में स्थित व्यास गद्दी नाम की जगह पर ऋषि वेदव्यास जी ने पुराणों का निर्माण किया था बताते है यही पर सभी वेद पुराण शास्त्रों को लिखा गया है |
नैमिषारण्य स्थित माँ ललिता देवी मंदिर 108 शक्तिपीठ में से एक शक्तिपीठ है |
एक लोक कथा के अनुसार इसी स्थल पर हनुमान जी ने अहिरावण का वध करके श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त करवाया था | बताते है कि यही पर श्रीराम ने अपने अश्वमेध यज्ञ को पूरा किया था और लव कुश से श्रीराम का मिलन भी यही पर हुआ था |
एक लोक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद सभी ऋषि मुनि इस बात को लेकर दुविधा में थे कलियुग शुरू होने वाला है कोई स्थल ऐसा होगा जहाँ कलियुग का प्रभाव न पड़े अपनी इस दुविधा के निराकरण हेतु सभी ऋषि मुनि ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्माजी ने एक पवित्र चक्र को पृथ्वी की तरफ फेंका और बताया की जहाँ पर यह चक्र गिरेगा वही स्थल कलियुग के प्रभाव से अछूता रहेगा और यह चक्र नैमिषारण्य में ही गिरा था उस समय यह स्थल नैमिष वन था |
वाराह पुराण के अनुसार यही पर नैमिष वन में असुरो का संघार भगवान विष्णु द्वारा किया गया था यह समस्त असुर ऋषि-मुनियों को सता रहे थे |
Naimisharanya History
सत्यनारायण कथा तो आपने सुनी ही होगी इस कथा में भी नैमिषारण्य का उल्लेख किया गया है बताते है कि सर्वप्रथम सत्यनारायण कथा को वेदव्यास जी ने ऋषि सूथ को यही पर सुनाया था इसके बाद यही कथा ऋषि सूथ ने ऋषि शौनक सहित अन्य ऋषि मुनियों को सुनाई थी |
एक अन्य कथा के अनुसार श्रीहरि विष्णु जी ने गयासुर का वध किया था और वध करके उस असुर के शरीर के तीन टुकड़े कर दिए थे , इस असुर गयासुर का सर बद्रीनाथ में गिरा था उसके चरण गया में गिरे थे और धड़ नैमिषारण्य में गिरा था |
तो दोस्तों ये सब Naimisharanya History से सम्बन्धित कथाये है जो कि आपको कही किसी धार्मिक किताबो में या मंदिरों में लिखी मिल जाती है |
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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