Mata Vaishno Devi Ki Kahani | माता वैष्णो देवी की पौराणिक कथा
Mata Vaishno Devi Ki Kahani की इस पोस्ट में हम आपको जम्मू के कटरा में स्थित माँ वैष्णो देवी के मन्दिर की पौराणिक कथाओ के बारे में बताएँगे इस मन्दिर में हमेशा श्रधालुओ की एक भारी भीड़ होती है आज हम आपको माता वैष्णो देवी मन्दिर के इतिहास और पौराणिक कथाओ के बारे में बताने वाले है जिससे आप सभी इस मन्दिर के महत्त्व को समझे |
Mata Vaishno Devi Ki Kahani – माता वैष्णो देवी की कथा
माँ वैष्णो देवी की कहानी जानने से पहले हम यह जान ले आखिर है कौन माँ वैष्णो देवी तो दोस्तों ध्यान दीजियेगा माँ महाकाली माँ सरस्वती माँ महालक्ष्मी के सम्मिलित रूप को ही माँ वैष्णो देवी कहा जाता है और जो कटरा में मातारानी का भवन है वहा आपको तीन पिंडी दिखाई देती है जिनमे से एक माँ महाकाली एक माँ महासरस्वती और एक माँ महालक्ष्मी की है और इन तीनो देवियों के सम्मिलित रूप को हम माँ वैष्णो देवी बोलते है |
चलिए अब शुरू करते है Mata Vaishno Devi Ki Kahani के बारे में इस मन्दिर के सन्दर्भ में कई पौराणिक कथाये है जिनमे से पण्डित श्रीधर से सम्बन्धित कथा और भैरवनाथ से सम्बन्धित कथा ज्यादा प्रचलित है जब मैंने इस विषय पे थोडा रिसर्च किया तो यह पाया कुछ लोग इन दोनों कथाओ को अलग अलग बताते है जबकि कुछ लोग इन दोनों ही कथाओ को एक साथ ही जोड़के देखते है खैर जो भी दोनों ही कथाये आपको हम बताते है मैंने भगवान् राम से सम्बंधित भी एक कथा सुनी है जिसका भी जिक्र यहाँ कर दूंगा |
History of Vaishno Devi Temple in Hindi
इस मन्दिर के इतिहास की बात करे तो ज्यादातर इस मन्दिर का सम्बन्ध पण्डित श्रीधर से ही बताया जाता है जो की लगभग 700 पूर्व की एक कथा है History of Vaishno Devi Temple में ज्यादा कुछ नहीं है बस इस मन्दिर से जुडी पौराणिक कथाये ही इस का इतिहास है |
पण्डित श्रीधर से जुडी हुई माँ वैष्णो देवी मन्दिर की पौराणिक कथा
अब हम Mata Vaishno Devi Ki Kahani की शुरुआत करते है पण्डित श्रीधर की कहानी से जम्मू राज्य में कटरा से थोड़ी दूरी पर है हंसाली गाँव यही रहते थे श्रीमान श्रीधर , श्रीधर जी के कोई संतान नहीं थी इसीलिए वो थोडा दुखी रहते थे |
एक दिन श्रीधर ने सभी गाँव वालो को भंडारे का न्योता दिया और गाँव वालो ने भंडारे के आयोजन के लिए पण्डित श्रीधर की मदद की फिर भी इतनी सामग्री एकत्र नहीं हो पाई जिससे भण्डारा अच्छी तरह हो जाता अब श्रीधर जी को यह चिंता सताने लगी की वो भण्डारा कैसे करेंगे अगले दिन भण्डारा था और श्रीधर पूरी रात सो नहीं पाए |
जिस दिन भण्डारा होना था श्रीधर जी स्नान करके अपनी कुटिया में पूजा पाठ किये और दोपहर से गांववासी आने लगे अब भी श्रीधर जी चिन्तित थे ये सब कैसे होगा परन्तु उन्होंने देखा एक अत्यंत सुन्दर कन्या वैष्णवी सभी को भोजन करा रही थी और यह भण्डारा अच्छे तरीके से संपन्न हो गया सभी उस कन्या की तारीफ कर रहे थे परन्तु भण्डारे के बाद वो कन्या किसी को नहीं दिखी उस कन्या का तेज देखने लायक था |
एक दिन वही कन्या वैष्णवी पंडित श्रीधर के सपने में आई और गुफा के बारे में बताया और इसके साथ ही पण्डित जी को बेटे का वरदान भी दिया बस पंडित श्रीधर समझ गये थे के वो कन्या कोई और नहीं साक्षात देवी वैष्णो है और उन्होंने गुफा की खोज की बस तबसे उस गुफा में श्रद्धालु आने लगे |
भैरवनाथ से जुडी हुई माता वैष्णो देवी की पौराणिक कथा – Mata Vaishno Devi Ki Kahani
ऐसा कहा जाता है की पण्डित श्रीधर के भण्डारे में बाबा गोरखनाथ और उनके शिष्य भैरवनाथ भी आये थे जब बालिका वैष्णवी ने भैरवनाथ को खाना परोसा तो वो बोले की मुझे मांसाहारी भोजन करना है तब उस बालिका ने विनम्र भाव से भैरवनाथ से कहा की ये एक पण्डित के घर का भण्डारा है यहाँ आपको शुद्ध शाकाहारी भोजन ही मिलेगा परन्तु भैरवनाथ ज़िद करने लगे और उस बालिका को पकड़ना चाहा तब वो वालिका वायु रूप में परिवर्तित होकर त्रिकुटा पर्वत पे चली गई |
यहाँ पर भी भैरवनाथ माने नही और माँ के पीछे पीछे वो भी त्रिकुटा पर्वत पर आ गये अब मान्यताओ अनुसार कहा जाता है की माँ वैष्णो की सुरक्षा के लिए वहा पवनपुत्र हनुमान जी आये बजरंगबली हनुमान को प्यास लगी तो माँ वैष्णो ने बाण चलाकर एक जलधारा उत्पन्न की और उसी जलधारा में माँ ने अपने केश भी धुले इसी स्थान को बाणगंगा बोला जाता है और कहा जाता है इस बाणगंगा में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते है |
इसके बाद माता वैष्णो ने एक गुफा में तपस्या की और हनुमान जी ने वहां पहरा दिया अब यहाँ भी भैरवनाथ आये हालाँकि यहाँ एक साधूजी ने भैरवनाथ को समझाया की वो बालिका कोई साधारण बालिका नहीं अपितु वह साक्षात् माँ जगदम्बा है परन्तु भैरवनाथ नहीं माना तब माता वैष्णो उस गुफा के दूसरे मार्ग से निकल गई थी शायद इसी स्थल को अर्धकुमारी कहा जाता है |
आप माता वैष्णो देवी की कहानी को पढ़ रहे है इसके अलावा आप नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके यह पोस्ट भी पढ़ सकते है –
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अब इस गुफा से जैसे ही माँ बाहर आई उन्होंने देवी का रूप लिया और भैरवनाथ को वहां से जाने को कहा और दुबारा गुफा के अन्दर चली गई लेकिन भैरवनाथ अब भी वही थे तो हनुमान जी और भैरवनाथ का घमासान युद्ध हुआ इस युद्ध का कोई अंत दिखाई नहीं दे रहा था |
फिर माता वैष्णो ने बाहर आकर भैरवनाथ का वध किया यही स्थल भवन कहा जाता है और भैरवनाथ का सर जिस घाटी में गिरा उसे भैरव घाटी कहा जाता है और यही पे बाबा भैरव का मन्दिर भी है जहाँ श्रद्धालु दर्शन हेतु जाते है |
अब भैरवनाथ को अपने किये पे पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमा मांगी तो माता ने भैरवनाथ को वरदान दिया था कि जो श्रद्धालु मेरे दर्शन करने आएगा उसको तब तक उचित फल नहीं मिलेगा जब तक वो तुम्हारे दर्शन न कर ले तो दोस्तों यह भी एक Mata Vaishno Devi Ki Kahani थी इसके अनुसार जो भी माँ वैष्णो देवी के दर्शन करने जाए उसे बाबा भैरव क्मंदिर भी जाना चाहिए |
इन कथाओ के अलावा भी एक कथा मेरे सामने आई जिसमे देवी माँ जगदम्बा असुरो का संघार कर रही थी एक दिन माँ महाकाली माँ महासरस्वती माँ महालक्ष्मी एक साथ प्रकट हुई और तीनो ने अपने सम्मिलित तेज से एक कन्या को जन्म दिया और उस जन्मी बालिका से कहा की तुम अब हमारे भक्त रत्नाकर के घर पुत्री रूप में जन्म लेके प्रथ्वी पर धर्म की स्थापना करो और खुद भी तपस्या करो और जब तुम्हारी तपस्या एक अधिकतम स्तर पे पहुँच जाएगी तब तुम भगवान विष्णु में लींन होकर एक हो जाओगी |
फिर क्या था माता वैष्णो ने कन्या रूप में रत्नाकर के घर जन्म लिया और शुरू से ही यह बालिका अत्यंत तेज बुद्धिमान थी इसमें सारे हुनर थे अब यह बालिका वैष्णवी जंगल में जाकर तपस्या करने लगी जहाँ वह मर्यादा पुरुशोत्त्तम भगवान राम से मिली और उन्हें वह पहचान गई और उनसे आग्रह किया वो उसे अपने में मिला ले किन्तु रामजी ने उसे रोका और कहा अभी यह समय इस काम के लिए उचित नही है मै अपने वनवास के बाद तुमसे दुबारा मिलूँगा और यदि तब तुमने मुझे पहचान लिया तो जरूर तुम्हारी इच्छा पूर्ण कर दूंगा |
फिर रावण से युद्ध समाप्त कर भगवान राम ने एक बुजुर्ग के भेष लेके वैष्णवी से मिले परन्तु अबकी वैष्णवी भगवान राम को पहचान नहीं पाई तब रामजी ने उस बालिका से कहा अभी भी एक में लीन होने का समय नहीं है और उस बालिका को त्रिकुटा पर्वत पे जाकर तपस्या करने का निर्देश दिया फिर वैष्णवी ने त्रिकुटा पर्वत पर अपना आश्रम बनाया और तपस्या में लींन हो गई उसकी महिमा दूर दूर तक फैलने लगी और दर्शन हेती श्रद्धालु आने लगे |
अब बाबा गोरखनाथ ने यह जानने के लिए कि क्या वैष्णवी अपने अध्यात्मिक स्तर के उच्चतम शिखर पे पहुंची है की नहीं इसलिए गोरखनाथ ने अपने शिष्य भैरवनाथ को भेजा अब वैष्णवी को भैरवनाथ देखने लगे और मतलब निगरानी करने लगा उसने देखा की यह बालिका है तो एक तपस्वी परन्तु हमेशा अपने साथ धनुष बाण रखती है और एक शेर उसके साथ ही रहता है बालिका की असीम सुन्दरता को देख भैरवनाथ थोडा भटक गए और उस बालिका से विवाह करने की बेतुकी जिद करने लगे |
इसी समय पण्डित श्रीधर ने भण्डारा किया जिसमे भैरवनाथ भी गये वैष्णवी भी गई बस भंडारे के उपरान्त ही भैरवनाथ उस बालिका के पीछे पड़ गया आगे की कहानी आप ऊपर पढ़ चुके है तो Mata Vaishno Devi Ki Kahani यही थी | यह जितनी भी माता वैष्णो से जुडी हुई कथाये हमने आपको बताई है यह सभी मान्यताओ के अनुसार है और पौराणिक कथाओ के अनुसार है हम इनकी सच्चाई का कोई भी दावा नहीं करते है |
माता वैष्णो देवी की कहानी से सम्बन्धित प्रश्न
माता वैष्णो देवी मंदिर जम्मू के कटरा में स्थित है |
माँ वैष्णो देवी की दो प्रमुख कहानियां है एक पण्डित श्रीधर से जुड़ी हुई और दूरी भैरवनाथ जी से जुड़ी हुई है दोनों ही कहानी आप यहाँ पढ़ सकते है |
माँ वैष्णो देवी , देवी माँ का अवतार है |
Mata Vaishno Devi Ki Kahani Pandir Shredhar aur Bhairavnath se judi hai aap is post me dono hi kahaniya padh sakte hai .