मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा और इतिहास के बारे में पढिये
हिन्दू धर्म में भगवान शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंग है जिनमे से एक ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश के कुरनूल जनपद में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है स्थित है इस ज्योतिर्लिंग का नाम श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग है आज की इस पोस्ट में हम आपको मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा और इतिहास से परिचित करायेंगे |
यह तो आप जानते ही है कि हिन्दू धर्म में 12 पवित्र ज्योतिर्लिंग है जिनका अपना एक विशेष महत्त्व है और इन सभी ज्योतिर्लिंग की अपनी एक पौराणिक कथा भी है , मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को श्रीशैलम मंदिर और श्री भ्रामराम्बा मल्लिकार्जुन मंदिर नाम से भी जाना जाता है |
अच्छा श्रीशैलम पर्वत पर स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दो शब्दों से मिलकर बना है एक मल्लिका जिसका अर्थ माता पार्वती से है और दूसरा अर्जुन जिसका सम्बन्ध भगवान शिव से बताया गया है |
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के पौराणिक कथाओ में दो कथाये अत्यधिक सुनने में आती है आइये एक एक करके हम दोनों को विस्तार से जान लेते है –
शिव पुराण के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
शिव पुराण जो कि एक हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ है शिव पुराण में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की जो कथा है वह पूर्ण रूप से भगवान शिव के परिवार के इर्द गिर्द ही है आइये अब जानते है इस धार्मिक कथा को – आप सब जानते है भगवान शिव माता पार्वती के दो पुत्र थे बड़े पुत्र का नाम कार्तिकेय जी और छोटे का नाम गणेश जी था |
पौराणिक कथा के अनुसार श्रीगणेश अपने बड़े पुत्र कार्तिकेय जी से पहले विवाह करने के इच्छुक थे परन्तु कार्तिकेय जी का कहना था कि मै बड़ा हु पहले मेरा विवाह होना चाहिए लेकिन श्रीगणेश ज़िद पकड़ लिए थे और दोनों भाइयो में इस बात को लेकर विवाद हो गया , अब यह विवाद जब गहरा गया तो इसकी भनक माता पार्वती और भगवान शिव को हुई |
अब शिवजी और पार्वती जी ने दोनों पुत्रो के सम्मुख एक शर्त रखी और शर्त के अनुरूप गणेशजी और कार्तिकेयजी में से जो भी पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले वापस लौटेगा उसी का विवाह पहले होगा अब क्या था दोनों पुत्रो ने इस शर्त को स्वीकार किया और कार्तिकेय जी अपने वाहन मयूर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा हेतु निकल पड़े |
अब एक तो गणेश जी थोड़े तंदुरुस्त थे ऊपर से उनका वाहन मूसक तो गणेश जी के लिए मूसक पर सवार होकर सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा संभव ही नहीं थी गणेशजी वही खड़े रहे और कुछ सोच रहे थे , गणेश जी सबसे बुद्धिमान देवता है और उन्होंने अपनी बुद्धिमता का प्रयोग किया और एक उपाय निकाल लिया |
अब गणेश जी ने अपने माता पिता को एक साथ एक जगह पर बिठा दिया जब शिवजी और पार्वती जी अपने-अपने आसन पर बैठ गए फिर गणेश जी दोनों की बड़े ही मन से पूजा की इसके बाद गणेशजी ने अपने माता पिता की सात बार परिक्रमा कर डाली सभी देवता यह देख रहे थे कि आखिर गणेशजी कर क्या रहे है |
जो फल हमें सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके मिलता है वही फल अपने माता पिता की परिक्रमा करके भी मिल जाता है इस प्रकार गणेश जी विजयी हो चुके थे अपने पुत्र की यह बुद्धिमता देखकर भगवान शिव और माता पार्वती अत्यधिक प्रसन थे फिर गणेश जी का विवाह रिद्धि-सिद्धि से करवा दिया गया |
अब जब कार्तिकेय जी सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा कर वापस लौटे तब तक गणेश जी का विवाह हो गया था और सिर्फ विवाह ही नही गणेश जी के दो पुत्र भी हो गए थे , कार्तिकेयजी को यह अच्छा न लगा और वह नाराज होकर वहां से चले गए और जाकर क्रौंच नाम के एक पर्वत पर बैठ गए अब शिवजी और माता पार्वती ने कार्तिकेयजी को मनाने हेतु देवऋषि नारद जी को भेजा , नारद जी ने कार्तिकेय जी को बहुत समझाया परन्तु वह नहीं माने |
अब माता पार्वती अत्यधिक दुखी थी फिर भगवान शिव के साथ माता पार्वती कार्तिकेयजी को मनाने हेतु क्रौंच पर्वत की और चल दी यह जानकर कार्तिकेयजी वहां से थोडा और दूर चले गए परन्तु अन्य देवताओ के अनुरोध करने से कार्तिकेय जी रुक गये और अपने माता पिता का आशीर्वाद लिया और शांत हुये , कहा जाता है जिस स्थान पर माता पार्वती और भगवान शिव रुके थे वही पर ही मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थापित है |
Bhimashankar Temple History – भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का इतिहास
Ghats of Banaras – बनारस के लोकप्रिय घाटों के बारे में समस्त जानकारी
राजकुमारी चन्द्रावती से सम्बन्धित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
अन्य एक धार्मिक ग्रन्थ में लिखा है की एक राजा चन्द्रगुप्त थे जो कि क्रौंच पर्वत के समीप ही रहते थे इन राजा की एक पुत्री थी जिनका नाम राजकुमारी चन्द्रावती था एक बार राजकुमारी चन्द्रावती किसी भारी मुसीबत में फस गई थी और इसी मुसीबत से बचने के लिये वह पर्वत पर रहने लगी वह यहाँ अपने सेवको के साथ रहने लगी |
राजकुमारी चन्द्रावती की एक गाय भी उनके साथ थी रोजाना गाय का दूध एक चट्टान पर बह जाता था अब यह दूध कौन निकालता था कैसे चट्टान पर आ जाता था यह समझ से परे था एक दिन राजकुमारी चन्द्रावती ने सपने में भगवान शिव को देखा शिवजी ने राजकुमारी को सपने में बताया कि वह चट्टान एक स्वयंभू शिवलिंग है |
अब क्या था अगली सुबह से राजकुमारी रोजाना उस शिवलिंग की पूजा करने लगी और राजकुमारी रोजाना मल्ल्लिका मतलब चमेली के पुष्प शिवलिंग पर अर्पण करती थी राजकुमारी की ऐसी भक्ति देख शिवजी अति प्रसन्न हुये और राजकुमारी चन्द्रावती को मोक्ष प्रदान किया |
श्रीशैलम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास
अब बात करते है इस ज्योतिर्लिंग के इतिहास के बारे में सातवाहन राजवंश के नासिक शिलालेख में इस ज्योतिर्लिंग का उल्लेख मिलता है जिससे हमें यह ज्ञात होता है दूसरी शताब्दी में यह मंदिर अस्तित्व में था |
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर के ज्यादातर भाग विजयनगर साम्राज्य के राजा हरिहर प्रथम ने बनवाये थे या उनके काल में बनवाये गए थे | काकतीय , पल्लव , चालुक्य साम्राज्य ने भी मंदिर बनवाने मे अहम भूमिका निभाई थी
विजयनगर राज्य के राजा कृष्णदेवराय ने इस जगह पर एक बेहद ही सुन्दर मंडप बनवाया था , प्रतापी राजा शिवाजी भी यहाँ पर आये थे और शिवाजी ने इस ज्योतिर्लिंग का प्रवेश द्वार और एक धर्मशाला बनवाई थी |
तो दोस्तों हमने आपको श्री शैलम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा और ज्ञात इतिहास से परिचित कराया |
Thanks for covering most of your experience in blog. Sure this will be very useful for those needed.
thanks