माँ पूर्णागिरि टनकपुर ट्रिप का यात्रा वृतान्त
सुबह सुबह मोबाइल बजने लगा देखा तो एक पुराने मित्र ( मतलब स्कूल फ्रेंड ) का कॉल था तो उससे बात की वो बोला कि चलोगे माँ पूर्णागिरि के दर्शन करने अब मुझमे तो घुमक्कड़ी का कीड़ा है तो मैंने तुरंत ही बोला की हा जरूर चलेंगे माँ के दर्शन करने तो बस थोड़ी और बात हुई फिर तय हुआ देर क्या करनी कल ही निकलते है मैंने बोला रुको जरा ट्रेन टिकट देखके फाइनल करता हु तो तुरन्त ही मैंने IRCTC खोली और हरदोई से टनकपुर की ट्रेन देखी अरे बताना भूल गया हम हरदोई उत्तर प्रदेश से है , हमारे हरदोई से टनकपुर के लिए त्रिबेनी एक्सप्रेस ट्रेन रोजाना चलती है तो मैंने जब जनरल डिब्बे की अवैलेबिलिटी चेक (कोरोना काल से अब जनरल डिब्बे में भी रिजर्वेशन होते है ) की तो मुझे आराम से दो सीट मिल गई मैंने फटाक से आने और जाने की बुकिंग की और मित्र को फोन करके बता दिया की भैया कल सुबह अपना झोला पैक करके रेलवे स्टेशन पर मिलो वो बोला ठीक , जनरल डिब्बे का हरदोई से टनकपुर का मात्र 100 रूपये किराया है वही स्लीपर का 170 रूपये है |
तो हमने जनरल डिब्बे से ही टनकपुर तक जाने का टिकट करा लिया था और ट्रेन सुबह 9 बजकर 52 मिनट पे थी हम दोनों मित्र 9:30 पे अपने बैग टाँगे मास्क लगाये हरदोई रेलवे स्टेशन पर खड़े ट्रेन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे ट्रेन राईट टाइम थी थोड़ी ही देर में ट्रेन आई हम दोनों अपनी सीट पे हो लिये अब बस ख़ुशी हम दोनों के चेहरे पे झलक रही थी ये घूमने का चस्का होता ही अलग है हमारे पड़ोस में एक महिला बैठी हुई थी उनके साथ एक छोटा बच्चा था उन महिला को बरेली जाना था मेरी उनसे बात हुई तो उन्होंने मुझे एक काम की जानकारी दी कि माँ के दर्शन करने जा रहे हो तो वहां से थोड़ी दूरी पर नानकमत्ता एक जगह है वहां जरूर जाना तो हमने ट्रेन में ही टनकपुर से नानकमत्ता की दूरी देखी जो की 40 किलोमीटर थी और अपनी लिस्ट में नानकमत्ता को शामिल किया फिर हमारी ट्रेन दौड़े चली जा रही थी |
अब थोड़ी ही देर बाद चाय की हुड़क सता रही थी खैर ज्यादा इन्तजार न करना पड़ा बरेली सिटी रेलवे स्टेशन के पास चाय-चाय की आवाज से एक प्रसन्नता मुख पे आ गई फिर चाय की चुस्किया लेते हुए ट्रेन की खिड़की से बाहर देखते हुए हम बढे जा रहे थे और हम लोग शाम को 3 बजकर 35 मिनट पे टनकपुर की रेलवे स्टेशन पे खड़े हिसाब लगा रहे की किधर से बाहर निकले खैर हम ज्यादा बुद्धि नहीं लगाये और भीड़ के साथ हो लिए सच कहू तो हरदोई से टनकपुर तक आना फिर यहाँ खड़े होना सब बहुत ही बढ़िया लग रहा था ये बात मेरी घुमक्कड़ लोगो को समझ आ गई होगी |
टनकपुर रेलवे स्टेशन पर लगे एक बोर्ड में विवेकानंद जी की तस्वीर देखकर मैंने उस बोर्ड को पढ़ा तो जानकारी मिली कि टनकपुर में विवेकानंद जी एक रात रुके थे अब हम जब स्टेशन के बाहर निकले तो तमाम गाड़ी वाले खड़े मिले तो माँ पूर्णागिरि जाने को थे लेकिन हमारा विचार अभी टनकपुर कस्बे को देखना था तो हम दोनों पैदल ही निकल पड़े एक गन्ने के जूस के ठेले पे आकर जूस पिया गन्ना का जूस पीते ही शरीर तरोताजा हो गया फिर जूस वाले ने बताया आप शारदा घाट पर स्नान कर लो पुण्य मिलेगा यहाँ एक बात बोलना चाहूँगा आप कभी भी ट्रिप करो तो लोकल लोगो से बातचीत जरूर करो तो हम पुण्य कमाने पैदल ही शारदा घाट की और निकल लिए और रास्ते में हम टनकपुर की मार्किट निहारते हुये जा रहे थे क्यूंकि कोई भी नयी जगह आप जाओ तो बड़ा कौतूहल रहता है मार्किट देखने का करीब एक या डेढ़ किलोमीटर के बाद हम शारदा घाट पर थे यहाँ का द्रश्य मनोरम था शारदा नदी और नदी के सामने हरे-हरे पहाड़ यह घाट ठीक ठाक है आपको मूलभूत सुविधाए यहाँ मिल जाएँगी |
हम दोनों ने एक एक करके शारदा नदी में स्नान किया नदी का जल अत्यंत ठंडा था लेकिन अक्टूबर का महिना था तो कोई दिक्कत नहीं हुई हमने एक अखबार बिछा लिया हा अख़बार को हम अपने घर से लेकर आये थे वो भी अंग्रेजी भाषा का अख़बार था उसपर सारे कपडे रखकर गए नदी में स्नान करने स्नान किया माँ शारदा में डुबुकी लगाई फिर वापस आकर कपडे बदले और जो कपड़े गीले हो रखे थे उनको एक पालीथीन में कर लिया गया , स्नान करके हमने कपडे इत्यादि पहने और गीले कपड़ो को संभाल के रखा बहुत ही सुखद अनुभूति हुई अब आइये आपको घाट घुमाते है यहाँ मुझे थोड़ी सी साफ़ सफाई की कमी दिखाई दी बाकी सब बढ़िया था घाट पे ही एक शनि मन्दिर है हमने वहां दर्शन किये शनि मंदिर के पास ही हनुमान जी की प्रतिमा और शारदा मैया जी है हम लोगो ने सभी देवी देवताओ के दर्शन किये , शारदा घाट पे आपको लिया अगरबत्ती इत्यादि प्रसाद से सम्बंधित वस्तुये मिल जाएँगी यहाँ मुंडन संस्कार के लिए अलग से एक व्यवस्था की गई है कुल मिलकर आप यहाँ जरूर आना |
अब हम निकले अगले पड़ाव श्री पंचमुखी महादेव मन्दिर की और जब हम शारदा घाट आ रहे तो बिलकुल घाट के समीप ही यह मन्दिर था जानकारी की तो मालूम हुआ की यह टनकपुर का काफी प्रसिद्ध मंदिर है तो थोडा पैदल चलके हम आ गए थे श्री पंचमुखी महादेव मंदिर परिसर में यहाँ बिलकुल भी भीड़ नहीं थी हमने बहुत ही आराम से महादेव के दर्शन किये वहां लगे नल से पानी पिया और वही पड़ी एक बेंच पे कुछ देर बैठकर मंदिर परिसर को निहारते रहे यहाँ पर काफी शांति थी थोड़ी देर बाद मन्दिर के पुजारी आई मतलब एक महिला थी वो उन्होंने दुबारा दर्शन करने को बोला और प्रसाद दिया इस मंदिर परिसर में और भी मंदिर है जैसे श्री राधा कृष्ण मन्दिर और श्री शीतला माता श्री दुर्गा माता श्री संतोषी माता मन्दिर आप समस्त देवी देवताओ के दर्शन कर ले , यही आसपास में धर्मशाला भी है आप ठहर भी सकते है बाकी शारदा घाट के समीप भी कई बजट धर्मशला दिखाई दी थी यदिआप टनकपुर में रुकने के इच्छुक हो तो आप शारदा घाट – श्री पंचमुखी महादेव मन्दिर की तरफ कही भी रुक सकते है |
अब हम इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित श्री बालाजी धाम हनुमान गढ़ी मन्दिर पर थे वहां हमने हनुमान जी के दर्शन किये यहाँ हनुमान जी की प्रतिमा बहुत ही आकर्षक है यहाँ की साफ़ सफाई देखकर मन प्रफुल्लित हो उठा आपको यहाँ भी आना चाहिये अब हम निकल पड़े माँ पूर्णागिरि जाने के साधन की तलाश में खैर किस्मत सही थी तो 20 मिनट बाद की एक गाड़ी मिल गई जिसमे हम बैठ गये करीब आधे घंटे बाद जब उस गाड़ी ने कोरोना के एक शब्द शोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ा के अपनी गाड़ी को खचाखच भर लिया था मतलब वो गाड़ी जब सवारियों से फुल हुई तो दौड़ पड़ी माँ पूर्णागिरि मन्दिर की ओर रास्ता सुहाना था लेकिन यहाँ के ड्राईवर बड़ी तेजी से चलाते है हम तो राम-राम करते हुए डर के साथ जा रहे थे हमारी गाड़ी रुकी सारे यात्री उतरे तो मालूम पड़ा की हम लोग ठूलीगाड आ गए है यहाँ से दूसरी गाड़ी में जाना होगा तुरंत ही हम दुबक लिए आगे की तरफ जाने वाली गाडी में जिसने हमें टुन्यास में उतार दिया टुन्यास वही जगह है जहाँ से माँ पूर्णागिरि की पैदल चढ़ाई शुरू होती है आपको बता दे कि टनकपुर से मुख्य मंदिर तक की दूरी लगभग 22 किलोमीटर है जिसमें टुन्यास से 3 किलोमीटर आपको पैदल ही जाना पड़ेगा जो ये 22 किलोमीटर की दूरी है इसे आप अपने साधन से भी तय कर सकते हो या फिर टनकपुर से गाड़ियाँ जाती है जो 50-60 रूपये लेकर आपको टुन्यास में छोड़ देंगी |.
हम टुन्यास में खड़े थे बिलकुल भैरव मन्दिर के सामने और विचार कर रहे थे की भोजन यही कर ले की ऊपर करे तो कुछ समझ नही आया तो हमने चढ़ाई शुरू कर दी करीब शाम के 7 बज रहे थे यहाँ काफी चहल पहल थी रास्ते में तमाम खाने पीने की दुकाने प्रसाद आदि की दुकाने और रुकने की धर्मशाला टाइप की थी थोडा आगे जाकर हमको रास्ते दो दिखाई दिए तो हमने सीधी वाला रास्ता चुना हालाँकि इस रास्ते में इतनी सीढियां थी कि आप थक जाओ लेकिंन जगह-जगह पर रुकने की व्यवस्था है हमने दो किलोमीटर की रास्ता तय कर ली तब भूख बहुत तेज लग रही तो हमने एक जगह रुकने का निर्णय लिया जानकारी की यहाँ जो प्रसाद की दुकाने है वहां आप ठहर सकते है नहा सकते हो फ्रेश हो सकते हो वो भी मुफ्त में बस शर्त ये की आपको प्रसाद उनसे ही लेना पड़ेगा ये प्रसाद वाले जो रुकने की व्यवस्था किये है उसमे एक हालनुमा बना देते है और उसमे गद्दे डाल देते है कम्बल दे देते है हम थके थे तो तुरंत ही एक प्रसाद की दुकान पे ठहर गये उसमे सबसे पहले हमारे जूतों को एक बोरी में रखा फिर हम वही गद्दों पर लेटकर आराम करने लगे और देखा की इसी दुकान में चाय का जुगाड़ था तो हमने वही चाय पी फिर भोजन के बारे में पता किया तो पड़ोस में ही एक भोजनालाय था वहां गये और एक एक थाली ली 100 रूपये की स्पेशल थाली थी जिसमे कोई भी स्वाद स्पेशल नहीं था बस पेट भरना था खैर कोई नही यहाँ इतनी ऊपर पहाड़ो में दुर्गम रास्ते पे जो मिल जाय बहुत है |
खैर स्वाद कैसा भी हो पेट भर गया था अब हम फिर आकर लेट गये तब तक प्रसाद की दुकान वाला आया और बोला भैया आप लोग आराम कर लो फिर नहा लो और रात में ही दर्शन कर लो तो हमारे मित्र कहने लगे यार 9 बजे रात में क्या नहाया जाय तो दुकान वाला बताया कि अभी रात में भीड़ कम होती है अब फिर हमारे मित्र बोले सही है रात में ही दर्शन करेंगे मैंने कहा ठीक लेकिन रात में करेंगे वो भी 12 बजे के पहले तो हम दोनों आराम करने लगे और पौने ग्यारह पे उठके नहा धोके निकल लिए माँ के मंदिर की और थोड़ी ही दूरी पे झूठे बाबा का मंदिर पड़ा हमने बाद में यहाँ दर्शन करने का निर्णय लिया और आगे बढ़ चले रास्ते में हम लोगो को जो भी देवी देवता की प्रतिमा दिखाई दे रही थी हम सब कही चरण स्पर्श करते हुए आगे जा रहे थे तब तक एक और प्रसिद्द मंदिर माँ काली मंदिर मिला लेकिन यहाँ भी हमने बाद में ही दर्शन करने का निर्णय लिया अब रास्ता जो था वो एकदम खड़ी चढ़ाई का था तो अब दिक्कत हो रही थी हम दोनों को बार बार रुकना पड़ रहा था और थकान भी थी लेकिन रास्ते में जब जय माता दी के जयकारे सुने देते थे तो फिर से जोश आ जाता था |
खैर देवी माँ के दर्शन की अभिलाषा थी तो हमारा उत्साह चरम पर था अब हमारे बिलकुल सामने माँ पूर्णागिरि का सुप्रसिद्ध मंदिर था और भीड़ न के बराबर थी मन ही मन मैंने उस प्रसाद की दुकान वाले के इस उत्तम सुझाव का धन्यवाद अदा किया हम दोनों को माँ के बहुत ही सुन्दर दर्शन मिले थे हम वहां माँ के सानिध्य में लगभग 5 मिनट रुके मुख्या मन्दिर में फोटोग्राफी मन थी अब हम एक नयी उमंग के साथ वापसी कर रहे थे न कोई थकान न किसी प्रकार की कोई चिंता थोड़ी दूर ही चले थे की एक भगोने में चाय खौलती दिख गई बस फिर क्या था हम दोनों वही एक-एक कुर्सी पकड़ के दो चाय का आर्डर देके बैठ गए , चाय समाप्त कर हम दोनों आगे बढे और रास्ते में माँ काली के दर्शन किये वहां पुजारी जी से आशीर्वाद लेकर वही प्रसाद की दुकान पे आ गये जहाँ हमारा सारा सामान बैग आदि रखे थे आते ही हम दोनों लेट गये और शायद 5 मिनट में ही नींद के आगोश में थे सुबह करीब 5 बजे मेरी आँख खुली तो देखा लोग माँ के दर्शन हेतु जा रहे थे मै फिर से सो गया अब सुबह 6 बजे उठकर फ्रेश होकर स्नान वगैरह करकर रेडी हुआ फिर अपने सहयोगी को उठाया अब हम दोनों अपने आगे की सफ़र की और निकल पड़े अब हमको पास ही स्थित झूठे के मंदिर जाना था |
टनकपुर में घूमने की जगहें – Tanakpur Tourist Places की A to Z जानकारी
Maa Purnagiri Yatra ki A to Z Jankari – माँ पूर्णागिरि मन्दिर कैसे जाये कहा ठहरे
आपकी जानकारी के लिये बता दू जो माँ पूर्णागिरि की चढ़ाई के दो रास्ते है वे दोनों ही झूठे के मन्दिर की ओर आकर मिलते है जब हम लोग कल रात चढ़ाई किये थे तब हमने सीढियों वाला रास्ता चुना था लेकिन वापसी में हमने दूसरा रास्ता चुना और दूसरे रास्ते में प्रसाद की दुकाने इत्यादि कम है लेकिन आपको इस रास्ते में बहुत ही मनोरम नज़ारे मिल जायेंगे आप जगह-जगह पर रूककर फूटू क्लिक करवाने को मजबूर हो जायेंगे आपको इस रास्ते में बेहतरीन हरियाली दिखाई पड़ेगी जब रास्ता इतना मनोरम था तो भैया हमने भी अपना कैमरा मोबाइल वाला निकाल लिया और फूटू पे फूटू क्लिक होने लगी दो लोग थे एक दुसरे की फूटू क्लिक कर रहे थे इस रास्ते में नीचे देखने से भी बहुत ही बढ़िया व्यू आता है कही कही से तो पहाड़ का बड़ा सुन्दर व्यू मिल जाता है तो मेरी एक और टिप्स आप वापसी हमेशा कम सीढियों वाले रास्ते से ही करे खैर फूटूबाजी करते करते हम नीचे आ गये और भैरव मंदिर के पास आकर भैरव बाबा के दर्शन किये एक और टिप्स आप जब भी माँ पूर्णागिरि के दर्शन करे तो रास्ते में आपको भैरव मन्दिर , झूठे का मन्दिर , माँ श्री काली मंदिर के दर्शन अवश्य करने चाहिए |
हम लोगो ने भैरब मंदिर में दर्शन करके सीधे गाड़ी स्टैंड के पास आकर एक गाड़ी में बैठ लिए जो ठूलीगाड तक जा रही थी उस गाडी वाले ने हम को ठूलीगाड में एक पुल के पास उतार दिया हम जैसे ही उतरे वहां के नजारा देख स्तब्ध रह गये नीचे शारदा नदी जो पहाड़ो से आ रही थी और सामने हरे हरे पहाड़ वाह क्या सुन्दर नजारा था यहाँ हम लोग फूटू क्लिक करने को मजबूर हो गये फटाफट फूटू लिए और बैठ लिए अगली गाड़ी मे जिसने हमें टनकपुर में पटक दिया वैसे हम दोनों को विदेश जाना था अब आप मेरी अगली पोस्ट में मेरी पहली विदेश यात्रा को पढेंगे |