History of Kumbhalgarh Fort in Hindi – कुम्भलगढ़ के किले का इतिहास
History of Kumbhalgarh Fort in Hindi की इस पोस्ट में हम राजस्थान के गौरव कुम्भलगढ़ दुर्ग के इतिहास के बारे में जानेंगे इसके अलावा हम यह भी जानेंगे की इस दुर्ग को किसने बनवाया , निसन्देह कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान के शौर्य को अच्छी तरह से परिभाषित करता है |
अच्छा हम सबको पता है की विश्व की सबसे ऊँची दीवार चीन में है लेकिन विश्व की दूसरी ऊँची दीवार कुम्भलगढ़ फोर्ट की दीवार है जो की भारतीयों के लिए गौरव की बात है |
History of Kumbhalgarh Fort in Hindi – कुम्भलगढ़ के किले का इतिहास
चलिए अब हम लोग इस प्रसिद्ध दुर्ग के इतिहास से रूबरू होते है यह दुर्ग अपने आप में एक महान और पराक्रम से भरे हुये इतिहास को समेटे हुये है चलिए इस दुर्ग के इतिहास को जानने से पहले थोड़ी और बाते इस दुर्ग के बारे में जान लेते है –
कुम्भलगढ़ दुर्ग के बारे में
यह दुर्ग भारत के राजस्थान प्रदेश के राजसमन्द जिले में स्थित है जो कि उदयपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर है और यह दुर्ग अरावली की पहाडियों में है इस दुर्ग को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में भी शामिल किया गया है |
यह दुर्ग राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला भी है | महाराणा कुम्भा , महाराणा प्रताप , महाराणा उदय सिंह , महाराणा सांगा , कुंवर प्रथ्वीराज जैसे पराक्रमी राजाओ का सम्बन्ध इसी किले से है |
कुम्भलगढ़ किले का निर्माण कब हुआ और कुम्भलगढ़ किले का निर्माण किसने करवाया
अब हमारे सामने दो प्रश्न है एक की कुम्भलगढ़ किले का निर्माण किसने करवाया और दूसरा कि कुम्भलगढ़ किले का निर्माण कब हुआ तो आइये इन दोनों प्रश्नों के उत्तर जान लेते है |
देखिये प्राप्त जानकारी के अनुसार कुम्भलगढ़ किले का निर्माण सन 1459 में 13 मई के दिन महाराणा कुम्भा ने करवाया था अच्छा एक अन्य जानकारी के अनुसार कहा जाता है की सम्राट अशोक के पुत्र सम्प्रति ने इस दुर्ग को छठी शताब्दी में बनवाया था |
और इसी के अवशेष पर फिर महाराणा कुम्भा ने इस दुर्ग को बनवाया ये राजा सम्प्रति जैन धर्म को मानता था इसलिए कुम्भलगढ़ किले में जैन धर्म के तमाम अवशेष प्राप्त होते है |
महाराणा कुम्भा ने जब इस अजेय दुर्ग का निर्माण करवाया था तो उसके साथ साथ सिक्के भी बनवाये थे जिसपे दुर्ग का नाम अंकित था तो अब आपको पता चल गया होगा की कुम्भलगढ़ किले का निर्माण किसने और कब करवाया था |
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विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दीवार वाला कुम्भलगढ़ किला
यह बात वाकई में हम भारतीयों के लिए गौरवपूर्ण है कि कुम्भलगढ़ किले की दीवार विश्व की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है आपको बता दे किले की बड़ी दीवारों में पहला नंबर ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना का है |
इस कुम्भलगढ़ के विशाल दुर्ग की दीवार लगभग 36 किलोमीटर लम्बी है और इसकी चौड़ाई लगभग 15 फीट है , वाह मतलब एक साथ दो कारे इस किले की दीवार पर चल सकती है जो की वाकई में अद्भुत है |
कुम्भलगढ़ के किले का इतिहास से जुड़ी अन्य मत – History of Kumbhalgarh Fort in Hindi
कहा जाता है की महाराणा कुम्भा ने मंडौर के राठोर की मंगेतर जो की झालो की राजकुमारी थी को बलपूर्वक शादी करके ले आये थे इसके उपरांत राठौर राजकुमार ने बहुत कोशिश की परन्तु वो झालो की राजकुमारी को वापस पा न सका |
राणा कुम्भा ने इस राजकुमारी के लिए एक ऐसा महल बनवाया जिससे आकाश साफ़ होने पर मंडौर दुर्ग दीखता था कुम्भलगढ़ दुर्ग में झालीबाव नाम से एक बावड़ी भी मौजूद है |
इस अजेय दुर्ग पर ढेर सारे आक्रमण हुए जिसमे पहला आक्रमण महाराणा कुम्भा के समय पे हुआ था लेकिन उस समय राणा कुम्भा किले के अन्दर नहीं था यह आक्रमण मांडू के शासक महमूद खिलजी ने किया था किन्तु खिलजी को सफलता नही मिली थी फिर गुजरात के सुलतान कुतुबुद्दीन ने इस दुर्ग पर आक्रमण किया परन्तु वह भी असफल रहा था |
इस दुर्ग का एक काला इतिहास भी है महाराणा कुम्भा की मृत्यु का , उदय सिंह ऊदा जो की महाराणा कुम्भा के बड़े पुत्र थे इन्होने छल से अपने पिता की हत्या कर दी थी और स्वयं महाराणा बन गया |
परन्तु इसे मेवाड़ के सामंतो से स्वीकार नहीं किया और इसे हटाकर कुम्भा के दूसरे पुत्र रायमल को महाराणा बना दिया था |रायमल के दो पुत्र प्रथ्वीराज और राणा सांगा थे जिनका जन्म इसी दुर्ग में हुआ था |
प्रथ्वीराज की मृत्यु कुम्भलगढ़ दुर्ग की पहाडियों में हुई थी इन्हें इनके बहनोई जगमाल ने विष देकर मार दिया था इसके बाद इस दुर्ग में एक और अनहोनी हुई थी |
जब एक दासी के पुत्र बनबीर ने महाराणा सांगा के पोते विक्रामादित्य की हत्या कर दी थी और साथ में उदयसिंह को भी बनबीर मारना चाहता था परन्तु पन्ना धाय जी ने अपने पुत्र का बलिदान देकर उदयसिंह को बचाकर बड़ी कोशिश करके कुम्भलगढ़ तक पहुँचाया |
और इसी दुर्ग में राणा उदय सिंह का बचपन बीता और बाद में इसी दुर्ग में इनका राजतिलक कर दिया गया था |
महाराणा प्रताप के शासन में शाहबाज खां ने कुम्भलगढ़ किले पर आक्रमण किया और डेरा डाल के दुर्ग के आसपास बैठ गया था पलड़ा महाराणा प्रताप का भारी था लेकिन कुछ समय बाद रसद की कमी होने लगी तो सन 1578 में महाराणा प्रताप दुर्ग से निकल गए और जंगलो में चले गए |
अब कुम्भलगढ़ पर मुगलों का अधिकार था कुछ समय बाद प्रताप जी दुबारा मुगलों से भिड़े और कुम्भलगढ़ दुर्ग को जीत लिया इसके बाद से यह दुर्ग कभी हारा नहीं |
कुम्भलगढ़ के किले के इतिहास से सम्बन्धित प्रश्न –
कुम्भलगढ़ का किला राजस्थान राज्य के राजसमन्द जिले में है |
कुम्भलगढ़ का किला अरावली की पहाड़ी पर है |
विश्व की दूसरी ऊँची दीवार कुम्भलगढ़ के किले की दीवार है |
कुम्भलगढ़ का किला उदयपुर से लगभग 84 किलोमीटर है |
कुम्भलगढ़ किले के इतिहास के बारे में जानने के लिये हमें महाराणा कुम्भा से जुड़ा इतिहास जानना होगा जो की विस्तार से इस पोस्ट में है आप पढिये |
कुम्भलगढ़ का किला राणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया था |
कुम्भलगढ़ का किला 15वी शताब्दी में सन 1459 में बनवाया गया था |
क्यूंकि यह किला विश्व की दूसरी ऊँची दीवार है और यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल है |
कुम्भलगढ़ का राजा राणा कुम्भा थे |
निष्कर्ष
राजस्थान में बहादुरी के किस्सों की कमी नहीं है आज आपने History of Kumbhalgarh Fort in Hindi के बारे में विस्तार से जाना यह समस्त जानकारी ऐतिहासिक है जिनके कुछ के तो प्रमाण है परन्तु कुछ के नहीं लेकिन स्थानीय लोगो के अनुसार यह सभी जानकारियां सत्य ही है |
कुम्भलगढ़ का इतिहास जानकर अच्छा लगा | बहुत कम शब्दों में येह की जानकारी आप ने दी जो की आसन नहीं होता है | महाराजा कुम्भा की इस दुर्ग की निर्माण में ही 15 वर्ष लगे थे | औल्नीय प्रयास !!
बहुत बहुत आभार आपका
नमश्कार मैं ऋतिक जैन सूरत का रहने वाला हूँ| आज मैंने इस ब्लॉग पर अपनी विचार धारा को व्यक्त करने की कोशिश करी है| कुम्भलगढ़ किले का निर्माण सन 1459 में 13 मई के दिन राजा राणा कुम्भा ने करवाया था। यह मेवाड़ किला बनास नदी के तट पर स्थित है। पर्यटक बड़ी संख्या में इस किले को देखने आते हैं क्योंकि यह किला राजस्थान राज्य का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण किला है। यह विशाल किला 13 लंबे और मजबूत मीनार से घिरा हुआ है। कुम्भलगढ़ किला अरावली की पहाड़ियों में 36 किमी में फैला हुआ है। इसमें महाराणा फ़तेह सिंह द्वारा निर्मित किया गया एक मंदिर भी है। ऐसा कहा जाता है की एक पंडित ने कहा था की इस किले को बचाने के लिए किसीको अपने मन-अनुसार जान देनी होगी तभी महाराणा सिंह ने अपनी जान देने का निर्णय किया और ३६ किलोमीटर तक चलने के बाद वह रुके और वही पर उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया और जहा पर उनका सर गिरा वही पर उनका मंदिर बनाया गया| लंबी घुमावदार दीवार दुश्मनों से रक्षा के लिए बनवाई गई थी, और ऐसा माना जाता है कि लंबाई के मामले में इसका स्थान ‘ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना’ के बाद दूसरे पे आता है।
बहुत ही सटीक और उपयुक्त जानकारी जो की ब्लॉग के लिए अत्यधिक काम की है आभार आपका
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