एक कप चाय और घुमक्कड़ी का रिश्ता – एक मजेदार चाय का वृतांत
एक कप चाय और घुमक्कड़ी का रिश्ता बहुत ही गहरा है दूसरो का तो पता नहीं लेकिन मेरी कोई भी घुमक्कड़ी बिन चाय के अधूरी है , और मेरी मानिये तो आप की घुमक्कड़ी की सारी थकान को चंद मिनटों में उड़न छू करने का दम रखती है सिर्फ एक कप चाय , यह पोस्ट एक वृतान्त की तरह ही है |
एक कप चाय
हम भारतीयों के शौख बड़े न्यारे होते है जिसमे से एक शौख है एक कप चाय का, हमारे जीवन में चाय का महत्त्व अत्यधिक है हम हिन्दुस्तानी हर छोटी छोटी बात पर चाय को ही याद करते है |
ख़ुशी में भी चाय , दुःख में भी चाय , थकान मिटानी हो तो चाय , नींद भगानी हो तो चाय , सुबह उठके सबसे पहले चाय , कोई मेहमान आये तो उसके स्वागत में चाय , मूड फ्रेश करना हो तो चाय , दोस्तों के साथ गप्पे मारनी हो तो साथ हो चाय , बहुत सर्दी है जरा चाय बना लो , गर्मी है चाय पीओ गर्मी को गर्मी ही काटती है |
घुमक्कड़ी और प्याली भर चाय का रिश्ता
अब चाय के रिश्तो को हम लोग जोड़ेंगे घुमक्कड़ी से और ये बात हर एक सच्चा घुमक्कड़ी जो चाय का दीवाना है बखूबी समझता है की चाय की चुस्कियो के साथ घूमने का मज़ा ही निराला है |
जाहिर सी बात है घुमक्कड़ी भी आसान नहीं हम कई बार लम्बी लम्बी यात्राये करते है तो स्ट्रेस मतलब तनाव तो आ ही जाता है और इसी तनाव को दो दूर करने का सबसे बेहतरीन तरीका एक कप चाय ही है |
घुमक्कड़ी , चाय और मेरे अनुभव
एक बार मै लखनऊ के एक बहुत ही प्रसिद्ध मन्दिर माँ चन्द्रिका देवी गया था वहां दर्शन करने के उपरान्त एक चाय की दूकान पर बैठा वहां एक छोटी से लड़की थी उससे पूछा तो बोली रुको मम्मी को बुलाती हूँ |
वो बिटिया पढ़ रही थी फिर उसकी मम्मी आई उन्होंने बड़े ही सेवा भाव से हमारे लिए चाय बनाई और कुल्हड़ में चाय परोसी ठंडी का मौसम था यह चाय पीकर अत्यंत आनन्द आ गया अच्छा कुल्हड़ में चाय पीने का अपना एक अलग ही स्वाद है |
चलिए अब एक कप चाय की कीमत को घुमक्कड़ी से जोड़ते हुए मै अपनी एक छोटी सी घुमक्कड़ी का किस्सा सुनाता हूँ , मै नजाकत के शहर लखनऊ में था अपने मित्र वैभव से बात की कि क्या चलोगे त्रिवेणी संगम प्रयागराज तों उधर से जवाब आया चलो चलके इलाहबाद की चाय पी जाएगी तो बस फिर तय हुआ की शाम की 6 बजे वाली ट्रेन गंगा गोमती से चलेंगे |
मै 5 बजे ही लखनऊ के चारबाग पहुँच गया था सितम्बर का महीना था ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर आ चुकी थी इस ट्रेन में ज्यादातर डिब्बे जनरल वाले ही होते है अपने मन मुताबिक सीट सर्च करी फिर वैभव भाई को फ़ोन किया बोले 10 मिनट में आ रहा हूँ |
फिर करीब 15 मिनट बाद उनका फ़ोन आया की भैया किस डिब्बे में हो तनिक बाहर निकल के मुंह तो दिखाओ तो मै अपने डिब्बे के गेट पर आया और क्या देखता हूँ वैभव भाई अपने दोनों हाथो में एक – एक कप चाय लिए तेजी से चले आ रहे थे |
हमने कहा ये क्या यार चाय क्यों तो वो बोला अरे साथ बैठकर चुस्की मारेंगे मैंने कहा चलो ठीक , हालाँकि मै भी यही कहता हूँ की रेलवे स्टेशन की चाय अच्छी नहीं होती लेकिन व्यक्तिगत तौर से पीता भी जरूर हूँ |
हम लोग चाय की चुस्कियां ले ही रहे थे तब तक ट्रेन चल दी हम दोनों आपास में इधर उधर की बाते करते रहे और करीब 8 बजे मै तो नींद के आगोश में आ गया मेरी यही दिक्कत है ट्रेन में जब हवा लगती ठंडी-ठंडी तब सो जरुर जाता हूँ |
करीब 10 बजे नींद खुली तो देखा हम लोग माँ गंगा की पवित्र नगरी इलाहबाद पहुच चुके थे हम दोनों प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर उतर लिए और समय था 11 बजे , अब वैभव को तलाश थी रुकने के जुगाड़ की लेकिन मै ढूंढ रहा था कोई बढ़िया दुकान हो एक कप चाय पी जाय और लो साहब दिख गई अपनी मंजिल |
एक नौजवान लड़का अपनी भट्ठी को सुलगा रहा था और चाय को शायद बना रहा था , पहुँच गए हम लोग एक कप चाय के जुगाड़ में लेकिन ये क्या वो सारी चाय केतली में डालकर किसी होटल में दे आया लेकिन हम लोगो से बोला रुको अभी आते है खैर दो मिनट में ही आ गया फिर बोला बताओ मैंने कहा दोस्त एक कड़क चाय पिला दो |
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वो बोला भैया स्पेशल चाय बनाऊ तो वैभव बोला हा यार आप स्पेशल ही बनाओ लो अब क्या था हमारी चाय बनाने के लिए भगोने में पानी , दूध , चाय पत्ती , इलायची पड़ चुकी थी वो भगोना नीचे से जला हुआ था और भट्ठी की धीमी धीमी आंच के ऊपर रखा हुआ |
वैभव और हम भगोने में ही झाँक रहे थे हमारी स्पेशल चाय में पड़ा दूध और पानी आपस में ऐसे घुल रहे थे जैसे कभी अलग थे ही नहीं |
साथ साथ चाय की पत्ती भी अब शरमाकर लाल हो चुकी थी वही शक्कर ने भी अपनी मिठास घोल दी थी अब इलायची क्या चुप रहती उसने अपनी महक को इस चाय में मिला दिया था |
जब चाय में उबाल आया तो इसमें अदरक भी डाल दी गई वो सोंधी सोंधी खुशबू चाय की वाकई में नथुनों में घुसकर ललचवा रही थी खैर अदरक पड़ने के बाद एक और उबाल ये क्या अबकी से उबाल आने पर कुछ चाय भगोने से निकलकर भट्ठी पर गिरी |
ऐसा लग रहा हो जैसा भगोना भट्ठी को भी चाय का स्वाद चखा रहा हो अब हमारे सामने कांच के मोटे वाले ग्लास में चाय परोसी गई |
यकीन मानिये वो चाय देखकर एक गहरा सकूं मिल रहा था तब तक चाय बनाने वाले उस नेक लड़के ने बिस्कुट भी दिए जब मैंने उस चाय की पहली चुस्की ली सच में स्पेशल से भी स्पेशल थी |
ये चाय शायद मेरे जीवन की अब तक की सबसे स्वादिष्ट चाय थी ये हम दोनों ने उस नौजवान को धन्यवाद कहा चाय के पैसे दे कर चले गए रूम सर्च करने और अगले दिन इलाहाबाद घुमा और कई जगह चाय पी |
दोस्तों घुमक्कड़ी में अगर आपको मजेदार एक कप चाय मिल जाए तो घुमक्कड़ी का मजा दोगुना हो जाता है अच्छा मै तो नया-नया घुमक्कड़ी हूँ अभी ज्यादा घूमा नहीं लेकिन मुझे पहाड़ो पर एक कप चाय पीने का बड़ा ही मन है |
हालाँकि ऋषिकेश में राम झूला के समीप यह असीम सुख प्राप्त कर चुका हूँ लेकिन सोचता हु जो बर्फ वाले पहाड़ होते है वहां सामने पहाड़ देखते हुए चाय की चुस्की मारना क्या आनंद होगा देखते है कब मौका मिलता है |
निष्कर्ष
बहुत से लोग चाय की बुराई भी करते है लेकिन मेरा व्यक्तिगत यह मानना है किसी भी चीज की अति नही करनी चाहिए आप चाय पिए इसमें चीनी की मात्रा जरूर कम रखे|
मै अपनी इलाहाबाद यात्रा की यह एक कप चाय कभी भूल नहीं पाउँगा आपके पास भी कोई ऐसा किस्सा हो तो कमेन्ट बॉक्स में जरूर लिखे |