एक ऐसी विदेश यात्रा जो ई-रिक्शा और स्प्लेंडर बाइक से की गई – बाबा सिद्धनाथ नेपाल
आप सबने हमारी पिछली पोस्ट माँ पूर्णागिरि टनकपुर ट्रिप का यात्रा वृतान्त पढ़ी जिसमे हम माँ पूर्णागिरि के दर्शन करकर टनकपुर आ गए थे अब आगे – गाड़ी वाले ने हमको कहाँ उतारा ये तो हमको जानकारी नहीं लेकिन हमको अब टनकपुर से नेपाल जाना था जी हा नेपाल यानी विदेश और करने थे दर्शन नेपाल के ब्रम्हदेव कंचनपुर जिले में स्थित बाबा सिद्धनाथ मंदिर के , पूर्णागिरि के दर्शन करने के बाद नेपाल स्थित बाबा सिद्धनाथ के दर्शन करने की मान्यता है तो अब था कौतुहल विदेश जाने का हम लोगो ने एक ई-रिक्शा वाले से जानकारी की कि भैया सिद्धबाबा के दर्शन करने जाना है कैसे जाया जाय तो उस सज्जन व्यक्ति ने समझाया की पहले आपको जाना होगा शारदा बैराज फिर वहां से पैदल ही आपको बैराज के पुल से होकर जाना पड़ेगा फिर आपको को मिलेंगे बाइक वाले जो आपको बाबा सिद्धनाथ तक ले जायेंगे |
अब पहला सवाल शारदा बैराज कैसे जाए तो ई रिक्शा वाले सज्जन बोले की कैसे क्या जाये बैठो छोड़ देता हु हम दोनों कहे अरे वाह विदेश जाने की शुरुआत ई-रिक्शा से वाह फिर हम दोनों बैठ लिए और टनकपुर को निहारते हुए नेपाल की और दौड़े जा रहे थे थोड़ी देर बाद शारदा नदी दिखाई देना शुरू हो गई हमारा ई-रिक्शा अब शारदा नदी के साथ-साथ किनारे दौड़ा जा रहा था अब एक पुल सा बैराज सा दिखने लगा हम समझ गये की यही होगा शारदा बैराज और हम सही भी थे यही था शारदा बैराज या टनकपुर बैराज हम दोनों ई-रिक्शा से उतरे उसको 40 रूपये दिये और आगे की नेपाल यात्रा पैदल ही शुरू कर दी समय सुबह के 9 बजकर 55 मिनट हो रहा था हालाँकि कोई स्पेशल इंतजाम नहीं था यहाँ का लेकिन थे तो हम भारत-नेपाल की सीमा पर तो अलग तरह की फीलिंग आ रही थी |
हम थोडा चले की बैराज आ गया और दूर सामने एक चेक पोस्ट का गेट दिखाई दिया यही था नेपाल मतलब शारदा नदी के एक तरफ भारत और दूसरी तरफ नेपाल और अगर जाना हो नेपाल तो इस बैराज के पुल को पार करके ही जाना होगा हम दोनों बैराज को निहारते हुये आगे बढ़ रहे थे अब हम बिलकुल चेक पोस्ट पर आ गए थे वहां के सुरक्षा कर्मियों ने हमारा आधार कार्ड देखा और आगे जाने को बोल दिया हम दोनों अब नेपाल यानि विदेश में थे आगे देखा ढेरो बाइक खड़ी थी तब तक एक व्यक्ति आया और बोला भैया आइये छोड़ देते है हमने पुछा कहाँ छोड़ दोगे तो वो बोला हम आपको मार्किट में छोड़ देंगे वहां से दो मिनट की दूरी पर ही मन्दिर है फिर हमारा अगला प्रश्न था पैसे वो बोला एक लोग का 10 रूपये तो मन में ख्याल आया क्या गज़ब की सस्ती विदेश यात्रा है खैर हम दोनों बैठ लिए उसकी बाइक पे रास्ता एक जगह थोडा ख़राब था 10 मिनट बाद उसने हमे मार्किट के पास ड्राप कर दिया | हम इस अद्भुत विदेश यात्रा में इतने व्यस्त थे कि फोटो क्लिक करना ही भूल गए थे खैर अब फोटो का याद आया तो फटाक से फोन निकाला और मार्केट की एक दो फोटो ले ली तो नेपाल की सरजमी पर मैंने पहली फोटो सुबह 10 बजकर 10 मिनट पे ले ली थी |
अब हम दोनों निकल लिए आगे और धीरे धीरे इस नेपाल की बाजार को देखते हुए जा रहे थे यहाँ तमाम होटल थे कपड़ो की दुकाने थे और इन सभी दुकानों पर नेपाल के ही लोग बैठे थे मुझे एक बात अजीब लगी वो ये की यहाँ दुकानो पर ज्यादातर औरते ही थी खैर चलते-चलते हम आ गये बाबा सिद्धनाथ मन्दिर परिसर में जो की नेपाल देश के कंचनपुर जिले के ब्रम्हदेव नाम की जगह पर है एक बात और यहाँ की मार्किट में जूते-चप्पल बहुत बिक रहे थे खैर इस परिसर में कई सुन्दर मंदिर है सबसे पहले हमको दिखाई पड़ा विष्णु मंदिर तो मेरे मित्र बोले अरे यहाँ भी भगवान् विष्णु का मन्दिर तो हम उनसे कहे अरे यार नेपाल ही तो है कोई अमेरिका थोड़ी है (वैसे मन्दिर तो अमेरिका में भी है) यहाँ पर हलकी सी भीड़ थी हम दोनों को दर्शन करने थे और प्रसाद चढ़ाना था तो हम लाइन में लग गये लाइन अंगस-बंगस थी मतलब सिस्टेमेटिक नही थी तो धक्का-मुक्की करके हम लोग पुजारी जी के पास आ गये उन्हें प्रसाद दिया टीका लगवाया और एक चुनरी को वही बाँध दिया चुनरी सभी बाँध रहे थे तो हम दोनों ने भी बाँध दी सोचे क्या पता चुनरी से कुछ भाग्योदय हो जाय अब आगे एक नल था हैंडपंप तो वहां आकर पानी पिया और थोड़ी देर वही बैठे |
अब बैठने से थकावट कम हो गई थी तो कुछ कदम दूर स्थित बाबा सिद्धनाथ मन्दिर की और चल दिए अब मुख्य मन्दिर हमारे सामने था वहां भी हलकी सी भीड़ थी खैर कोई नहीं हम दोनों आगे बढे और अपना प्रसाद पुजारी जी को दिया और बाबा सिद्धनाथ की प्रतिमा को देखा मन ही मन बाबा को नमन किया अपना प्रसाद वापस लिया फिर इस मन्दिर को देखा आके श्री सिद्धनाथ बाबा का यह मंदिर भव्य था अब हम दोनों ने बाबा सिद्धनाथ के दर्शन प्राप्त कर लिए थे लेकिन अभी भी यहाँ आसपास कई और मंदिर थे तो हमने सब कही दर्शन किये सबसे पहले गये प्राचीन अखंड सिद्ध धुना की और फिर प्राचीन इनार मतलब कुवां जो की बंद था लेकिन अन्दर उसमे एक हैंडपंप लगा था इसके बाद यहाँ बने हुए पार्क में बैठके विश्राम किया अब यार भूख भी लग रही थी और हमारे श्री सिद्धनाथ बाबा के दर्शन भी हो गये तो सोचा क्यों न नेपाल में ही कुछ खाया जाये तो मित्र कहने लगे हा यार विदेश में पेटपूजा तो बनती है आ गए हम एक रेस्टोरेंट तो वहां एक नेपाली महिला थी तो मेनू देखा ज्यादा समझ नहीं आया तो मैगी मगा ली 40 रूपये की एक प्लेट मैगी थी जब वो महिला मैगी बना रही थी तो हमने मैगी का पैकेट देखा ये जो मैगी हम खाने जा रहे थे इसकी मैनूफैकचरिंग नेपाल की ही थी |
हमारी नेपाली मैगी बन रही थी तब तक मैंने उस महिला से चाय बनाने का आग्रह किया तो वो एक भगोने में चाय भी बनाने लगी थोड़ी ही देर में हमारे सम्मुख मैगी और चाय थी और स्वाद की बात करू तो ठीक ठाक न बढ़िया न ख़राब चाय की कीमत 10 रूपये थी अब नेपाल से वापसी करनी थी तो फिर मार्केट से भारत की और निकले तब तक वही स्प्लेंडर वाले भाई मिल गये जिनके साथ हम सुबह यहाँ आये थे वो बोले अरे भैया आप दोनों कर लिए दर्शन हम लोग जी सर बिलकुल बहुत ही उत्तम दर्शन हुये है अब आप ही हमको फिर से चेक पोस्ट तक छोड़ दीजिये फिर हम दोनों उनकी स्प्लेंडर पर सवार उनसे बाते करते हुए आ रहे थे आपको बता दू इस मार्केट में होटल भी है यदि कोई रुकना चाहे तो रुक सकता है खैर अब हम नेपाल को बाय बाय बोलके वापस बैराज को पार करके भारत में आ गये थे अब समय 11:30 हो रहा था और हमारा अगला पड़ाव नानकमत्ता था तो मैंने वही एक ई रिक्शे वाले से जानकारी ली तो वो बोला नानकमत्ता तक टनकपुर बस स्टैण्ड से बस भी जाती है और टेम्पो भी मैंने कहा चल भाई जल्दी से बस स्टैण्ड पहुंचा दे |
गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब कैसे पहुँचे कहाँ रुके क्या-क्या देखे भोजन आदि की जानकारी
बस स्टैण्ड आकर जनकारी की तो पता चला जो बसे रुद्रपुर काशीपुर जाती है वो नानकमत्ता होकर ही जाती है तो हम दोनों एक काशीपुर वाली बस में सवार हो लिए यहाँ से नानकमत्ता लगभग 40 किलोमीटर रहा होगा आराम से बस में बैठकर उत्तराखण्ड राज्य की सडको को निहार रहे थे सड़के बढ़िया थी बस तेजी से दौड़े जा रही थी किराया थोडा सा भूल रहा हु पर शायद 60-65 रूपये था करीब दोपहर के १ बजे बस ने हमको नानकमत्ता गुरूद्वारे के प्रवेश द्वार पर उतार दिया हम उतर गये और एक व्यक्ति से गुरूद्वारे के बारे में जानकारी ली तो उन्होंने बढ़िया जानकारी दी की सीधे चले जाओ लगभग 500-600 मीटर बाद आ जायेगा गुरुद्वारा फिर मैंने उन्ही सज्जन व्यक्ति से नानकमत्ता में ठहरने के विकल्प की जानकारी ली कि होटल कहा मिलेंगे तो बोले अरे भैया क्यों लोगे होटल आप लोग जाओ सीधे गुरुद्वारा फिर गुरुद्वारा में अन्दर न जाना उसके पास से एक रास्ता गया है वही एक सराय है वाही रुक जाना अब हम दोनों बड़े खुश थे क्यूंकि आज हमको रुकना था हमारी वापसी की ट्रेन सुबह 9 बजे थी तो हमारे मित्र कहने लगे सनी भाई पहले सराय ही देखते है और रुकने का कन्फर्म करते है अगर सराय मिली तो ठीक वरना कुछ और देखेंगे हम दोनों चल दिए |
थोड़ी देर बाद नानकमत्ता गुरुद्वारा दिखाई देने लगा था भाई साहब क्या गज़ब का गुरुद्वारा था इसे देखते ही हम सराय भूल गए और इसकी ख़ूबसूरती को मोबाइल में कैद लिया फिर याद आया अरे सराय देखी जाय तो एक व्यक्ति से पूछा तो उन्होंने बताया यही आगे गली में जाओ हम दोनों चले तो सबसे पहले एक भवन दिखा लगा यही सराय होगी तो देखा ये लंगर था जिसका नाम श्री गुरु का लंगर था थोडा आगे गए तो दिखी श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब निवास हम दोनों खुश हुए अब बस यही मन में था की कोई रूम मिल जाता बस बिना देर किये पहुँच गये रिसेप्शन पर वहां कोई था नहीं आसपास मालूम किया तो बताया गया लंगर में गये है अभी आते होंगे 15 मिनट बाद एक सरदार जी आये हम लोगो ने उनको नमस्कार किया तो उन्होंने भी हमारा अभिवादन स्वीकार किया फिर बताया की यहाँ नार्मल रूम 100 रूपये में है और AC 500 में तो हम दोनों ने डिमांड की नार्मल 100 रूपये वाले रूम की रूम मिल गया आधार कार्ड दिखाकर पैसे जमा किये और सरदार जी ने हमको चाभी दी हम दोनों आ गए रूम में |
आपको बता दे श्री गुरु हर्गोबिंस निवास काफी बड़ा था यहाँ बहुत से कमरे थे और सामने एक बड़ा सा मैदान था कुल मिलाकर रुकने के लिए बहुत ही उत्तम जगह थी और मात्र 100 रूपये में हम लोग रूम में गये तो देखा रूम में ही वाशरूम भी था अरे वाह मजा गई भाई 100 रूपये में attach वाशरूम वाला रूम हा आपको बता दे रूम का इंटीरियर औसत दर्जे का था वाशरूम में भी सब औसत था और यहाँ पंखा लगा था लेकिन लाइट के जाने बाद पंखा भी बंद हो जाता है मतलब इन्वेर्टर और जनरेटर सेवा नहीं है यदि आपको सुख सुविधा वाला रूम चाहिए हो तो आप 100 रूपये वाला रूम न ले खैर हम दोनों तो बहुत खुश थे थोड़ी देर आराम किये फिर नहा लिए और निकल लिये भोजन की तलाश में और दिमाग में आया क्यों न लंगर में प्रसाद ग्रहण करे तो आ गये लंगर में सर को ढकना यहाँ अनिवार्य है हम दोनों ने सर को ढका और अपने जूते निकाले अपनी थाली ली जाकर फिर लंगर में चने की सब्जी दाल रोटी चावल का प्रसाद ग्रहण किया बहुत ही बढ़िया स्वाद था आत्मा तृप्त हो गई बाद में हमने अपनी थाली धुली और आकर लंगर में आधे घंटे लोगो को खाना परोसा फिर आकर रूम में लेट गये और सो गए |
शाम करीब 4 बजे मेरी आँख खुली तो दोस्त को उठाया कपडे पहने रूम लाक किया और निकल पड़े गुरूद्वारे में मत्था टेकने तक तक रूम के बार एक व्यक्ति मिले उन्होंने बताया अरे बाउली साहिब के भी दर्शन कर आओ यहाँ से 10 मिनट की दूरी पे है उन्होंने रास्ता बताया हम दोनों 15 मिनट बाद आ गए बाउली साहिब यार क्या गज़ब जगह थी वास्तव में ये एक बहुत ही सुन्दर झील थी जिसमे झील के अन्दर ही एक गुरुद्वारा था और उसमे एक बाउली थी हम दोनों इसे निहारते ही रह गए इतना मनोरम द्रश्य था की कैसे लिखू समझ नहीं आ रहा एक रास्ता बना हुआ था जिसमे दोनों और झील थी और आगे जाकर एक बाउली थी यहाँ हम दोनों ने बहुत फोटो क्लिक किये यहाँ आप नौका विहार भी कर सकते हो लेकिन हम दोनों ने ही नौका विहार में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई बस हम लोग इस झील को देखते ही रहे |
शाम के 5 बज रहे थे तो सूर्यास्त का इतना अद्भुत और सुन्दर द्रश्य मैंने यहाँ पर देखा की आप सभी से यही कहूँगा आप लोग यहाँ पर जरूर आये सूर्यास्त देखा फिर बाउली साहिब के गेट पर आकार आइसक्रीम को खाते खाते इस झील को देखा इसे शायद नानक सागर झील कहते है अब हम वापस आ गए और आकर सबसे पहले पहुँच गये जूता चप्पल काउन्टर पर और अपने जूते जमा करवा दिए अब इस भव्य नानकमत्ता गुरूद्वारे के अन्दर जा रहे थे हाथ धुले फिर अन्दर गये प्रसाद लिया वहा हलुआ दिया था प्रसाद में जिसकी पर्ची कटवानी पड़ती थी फिर मुख्य गुरूद्वारे में जाकर मत्था टेका अन्दर का वातावरण इतना दिव्य था की हम दोनों वही देर तक बैठे रहे कभी गुरूद्वारे की भव्यता देखते कभी दुसरो को मत्था टेकते देखते फिर हम बाहरआये और बाहर से देखा संगमरमर चारो तरफ लगा था नानकमत्ता गुरूद्वारे की भव्यता वाकई में अद्भुत है |
अब हम लोग आगे गए और देखा एक सरोवर भी यहाँ था सरोवर भी इतना भव्य की बस आप नज़ारे न हटा पाओ हम दोनों सरोवर के पास गये और देखा यहाँ पर रंगीन मछलिया भी थी जो की बहुत प्यारी थी तो हम तो वही बैठकर मछालियो को देख रहे थे वैसे यहाँ फोटोग्राफी तो मना थी फिर मैंने यहाँ पर चुपके से वीडियो बने क्या करता इतनी प्यारी मछलियां ही थी तब तक हमारे मित्र पूरे सरोवर का एक चक्कर काट आये फिर हम दोनों सरोवर के किनारे थोड़ी देर बैठे रहे फिर उठे , यही गुरुद्वारा परिसर में ही स्थित पवित्र पीपल के वृक्ष के पास गए इस वृक्ष की यहाँ पर बड़ी मान्यता था यह पीपल का वृक्ष एकदम हरा भरा है पीपल के वृक्ष के सामने ही एक और गुरुद्वारा सा बना हुआ था हम दोनों वहां भी गये फिर इस परिसर की खूबसूरती को निहारने के बाद वापस अपने रूम की तरफ चल दिए |
गुरुद्वारा परिसर से बाहर आकर थोडा आसपास स्थित मार्केट को देखा फिर आ गए रूम में और अब आराम करने लगे क्यूंकि सुबह हम लोगो को निकलना था आपको बता दे नानकमत्ता जगह जो है वो ऊधमसिंहनगर जिले में स्थित है जो की उत्तराखंड राज्य में है हमारा वापसी का टिकट टनकपुर से था लेकिन यहाँ से टनकपुर 40 किलोमीटर था और खटीमा 15 किलोमीटर और जो टनकपुर से ट्रेन थी वो टनकपुर से चलती है फिर खटीमा भी रूकती है तो जब ट्रेन खटीमा आएगी तो हम टनकपुर क्यों जाए खटीमा से ही निकल लेंगे ये सब विचार करते करते हम दोनों अलार्म लगाकर सो गए अज खूब पैदल चले थे जल्दी ही नींद आ गई एक बार जो नींद आई तो सुबह ही खुली उठके हम दोनों फ्रेश हुये नहा धो के रेडी हो गए और रूम की चाभी सरदार जी को सौंपी और उनको अभिवादन करके वहां से चल दिये , अब हम दोनों को जल्दी थी खटीमा पहुँचने की खैर रोड पे एक टेम्पो मिल गया और उसने हम जल्द ही खटीमा उतार दिया फिर वहां से 10 मिनट पैदल चलकर सुबह के 8 बजकर 15 मिनट पर हम लोग आ गए थे खटीमा रेलवे स्टेशन भूख लग रही थी तो स्टेशन पर ही समोसे लिये और चाय आराम से एक बेंच पर बैठकर समोसे चाय के मजे लिए थोड़ी देर बाद हमारी ट्रेन आ गई और हम दोनों अपनी अपनी सीट पर बैठ गए और 9 बजे हमारी ट्रेन ने खटीमा रेलवे स्टेशन को अलविदा कह दिया |
हम दोनों इस ट्रिप की बाते कर रहे थे और बहुत ही खुश थे क्यूंकि इस ट्रिप में धार्मिक जगहे थी साथ साथ प्राकृतिक नज़ारे भी थे और यह एक बजट ट्रिप थी हम दोनों अपने अपने फोन में इस ट्रिप में ली गई फोटो देखने लगे और बाते करते करते आगे की ट्रिप का प्लान करने लगे की अब कहाँ जाए कब जाए यही सब खैर ट्रेन राईट टाइम थी और हम दोनों दोपहर के 2 बजे हरदोई रेलवे स्टेशन पर थे अब हम दोनों अपने अपने घर की ओर चल दिये , तो इस तरह हमारी बाबा सिद्धनाथ नेपाल और नानकमत्ता उत्तराखंड की यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न हुई |
बहुत ही अच्छा वर्णन । आपके लेख से मुझे पूर्णागिरी टनकपुर सिद्बबाबा की यात्रा में बहुत मदद मिली।दिल से धन्यवाद।
धन्यवाद सर